11 March 2022 01:26 PM
जोग संजोग टाइम्स , बीकानेर
युवा रचनाकार विनीता शर्मा ने आज दिल्ली में शुरू हुए साहित्य अकादेमी के साहित्योत्सव के पहले दिन यंग-राइटर्स मीट में राजस्थानी का प्रतिनिधित्व किया। विनीता शर्मा ने ‘मैं क्यों लिखती हूं’ सत्र में कहा कि लिखना मेरे लिये रियाज है। अभ्यास है। लिखते रहने से संभव है कि मैं रचने लगूंगी। कुछ ऐसा लिख पाऊंगी, इसलिये लिखती हूं। निसंदेह, मेरा लिखना किसी कारखाने में बनने वाले प्रॉडक्ट नहीं है, न चुटकियों का खेल। मेरा लिखना मन के संवेग पर निर्भर करता है। जिसका कोई वक्त नहीं है। जिसकी कोई प्रक्रिया नहीं है। जिसका कोई फार्मूला नहीं है।
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए विनीता ने कहा कि मैं लिखती हूं ताकि रचने की अवस्था तक पहुंच सकूं। रचना न सिर्फ मेरा लक्ष्य है बल्कि सपना भी। रच पाऊं अगर दो ओळियां। मेरा विश्वास है कि आप मेरी राजस्थानी भाषा की मिठास भरा यह शब्द समझ रहे होंगे। कहना चाहती हूं कि दो ओळियां रचने की खेचळ में चल रही घांण-मथांण का नाम है मेरा लिखना।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्रीराम परिहार ने की। यंगराइटर्स मीट में नेपाली से मोनिका राणा, संस्कृत से मोहिनी अरोड़ा और तेलगू से बालसुधाकर मौली ने भागीदारी की।
जोग संजोग टाइम्स , बीकानेर
युवा रचनाकार विनीता शर्मा ने आज दिल्ली में शुरू हुए साहित्य अकादेमी के साहित्योत्सव के पहले दिन यंग-राइटर्स मीट में राजस्थानी का प्रतिनिधित्व किया। विनीता शर्मा ने ‘मैं क्यों लिखती हूं’ सत्र में कहा कि लिखना मेरे लिये रियाज है। अभ्यास है। लिखते रहने से संभव है कि मैं रचने लगूंगी। कुछ ऐसा लिख पाऊंगी, इसलिये लिखती हूं। निसंदेह, मेरा लिखना किसी कारखाने में बनने वाले प्रॉडक्ट नहीं है, न चुटकियों का खेल। मेरा लिखना मन के संवेग पर निर्भर करता है। जिसका कोई वक्त नहीं है। जिसकी कोई प्रक्रिया नहीं है। जिसका कोई फार्मूला नहीं है।
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए विनीता ने कहा कि मैं लिखती हूं ताकि रचने की अवस्था तक पहुंच सकूं। रचना न सिर्फ मेरा लक्ष्य है बल्कि सपना भी। रच पाऊं अगर दो ओळियां। मेरा विश्वास है कि आप मेरी राजस्थानी भाषा की मिठास भरा यह शब्द समझ रहे होंगे। कहना चाहती हूं कि दो ओळियां रचने की खेचळ में चल रही घांण-मथांण का नाम है मेरा लिखना।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्रीराम परिहार ने की। यंगराइटर्स मीट में नेपाली से मोनिका राणा, संस्कृत से मोहिनी अरोड़ा और तेलगू से बालसुधाकर मौली ने भागीदारी की।
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