11 March 2023 07:45 PM
जोग संजोग टाइम्स,
जूनागढ़, जो हमेशा से पर्यटकों की चहल-पहल से चहकता रहा है, रविवार को भारी भीड़ के बावजूद शांत था। वह गमगीन था। आज इस ऐतिहासिक परिसर में पर्यटकों को एंट्री नहीं मिली क्योंकि यह राजशाही की अंतिम निशानी का दिन था। डूंगरपुर की राजकुमारी और फिर बीकानेर की महारानी सुशीला कुमारी आज विदाई के दिन थीं। हर कोई गम में डूबा हुआ था। लेकिन राजपरिवार के सदस्य अंतिम यात्रा के दौरान भी गाजे-बाजे के साथ ही गढ़ से बाहर निकला। जहां ड्योढ़ी में कभी सुशीला कुमारी दुल्हन बनकर आई थी, वहीं उसी परिसर से उनकी पार्थिव देह बाहर निकली। महारानी साहिबा से "दाता" और "दादीसा" जैसे नाम से पहचान रखने वाली सुशीला कुमारी की अंतिम यात्रा सटीक समय पर साड़े ग्यारह बजे शुरू हुई। उसने जूनागढ़ के आगे से होते हुए पब्लिक पार्क, जयपुर रोड के माध्यम से सागर तक जाने का निर्णय लिया था।
सिद्धि कुमारी की तरफ निगाहें
अंतिम यात्रा में शामिल होने आए लोगों की निगाहें सिर्फ सिद्धि कुमारी की तरफ थी। इस परिवार में और भी सदस्य हैं लेकिन सिद्धि कुमारी ही जनता के बीच रहती हैं। बीकानेर पूर्व की विधायक सिद्धि कुमारी अपनी दादीसा की सेवा में जुटी रहती थी। हर किसी को पता है कि दादीसा के जाने से सिद्धिकुमारी के जीवन में बड़ी रिक्तता आई है। सिद्धि कुमारी के चेहरे पर “दाता” के जाने का गम साफ नजर आया।
सागर में अंतिम संस्कार
बीकानेर राजपरिवार के सभी सदस्यों का अंतिम संस्कार सागर में ही होता है। “राजपरिवार की छतरियां” नाम से विख्यात इस स्थान पर राजपरिवार के सभी सदस्यों की अलग-अलग समाधियां बनी हुई हैं। यहीं पर सुशीला कुमारी की एक छत्तरी अगले कुछ समय में बनकर तैयार हो जाएगी।
ऊंट, बैंड और शाही सवारी
अंतिम यात्रा में सबसे आगे राजस्थानी परिधानों से सजे ऊंट चल रहे थे, उनके पीछे राजपरिवार का स्पेशल बैंड मातमी धुन गा रहा था। वहीं पीछे शाही परिवार की पौशाक पहने लोग भी चल रहे थे। बड़ी संख्या में सामान्य लोग भी साथ साथ चल रहे थे। राजमाता के लिए विशेष पालकी कल ही तैयार की गई। जिसे फूलों से सजाया गया। इसी पालकी में उन्हें सागर तक ले जाया गया। इस सवारी में ऊंटों की गम्भीरता और बैंड की मातमी धुन ने सभी को मदहोश कर दिया था। इसके अलावा, शाही परिवार के सदस्यों के आकर्षक पोशाक भी सबकी नजरों में थे। उनकी शानदार पोशाकों में अलग-अलग रंगों का उपयोग किया गया था जो लोगों को खुशी और उत्साह देते थे। साथ ही साथ, इनकी स्वच्छता और व्यवहार सभी को प्रभावित करते थे।
जोग संजोग टाइम्स,
जूनागढ़, जो हमेशा से पर्यटकों की चहल-पहल से चहकता रहा है, रविवार को भारी भीड़ के बावजूद शांत था। वह गमगीन था। आज इस ऐतिहासिक परिसर में पर्यटकों को एंट्री नहीं मिली क्योंकि यह राजशाही की अंतिम निशानी का दिन था। डूंगरपुर की राजकुमारी और फिर बीकानेर की महारानी सुशीला कुमारी आज विदाई के दिन थीं। हर कोई गम में डूबा हुआ था। लेकिन राजपरिवार के सदस्य अंतिम यात्रा के दौरान भी गाजे-बाजे के साथ ही गढ़ से बाहर निकला। जहां ड्योढ़ी में कभी सुशीला कुमारी दुल्हन बनकर आई थी, वहीं उसी परिसर से उनकी पार्थिव देह बाहर निकली। महारानी साहिबा से "दाता" और "दादीसा" जैसे नाम से पहचान रखने वाली सुशीला कुमारी की अंतिम यात्रा सटीक समय पर साड़े ग्यारह बजे शुरू हुई। उसने जूनागढ़ के आगे से होते हुए पब्लिक पार्क, जयपुर रोड के माध्यम से सागर तक जाने का निर्णय लिया था।
सिद्धि कुमारी की तरफ निगाहें
अंतिम यात्रा में शामिल होने आए लोगों की निगाहें सिर्फ सिद्धि कुमारी की तरफ थी। इस परिवार में और भी सदस्य हैं लेकिन सिद्धि कुमारी ही जनता के बीच रहती हैं। बीकानेर पूर्व की विधायक सिद्धि कुमारी अपनी दादीसा की सेवा में जुटी रहती थी। हर किसी को पता है कि दादीसा के जाने से सिद्धिकुमारी के जीवन में बड़ी रिक्तता आई है। सिद्धि कुमारी के चेहरे पर “दाता” के जाने का गम साफ नजर आया।
सागर में अंतिम संस्कार
बीकानेर राजपरिवार के सभी सदस्यों का अंतिम संस्कार सागर में ही होता है। “राजपरिवार की छतरियां” नाम से विख्यात इस स्थान पर राजपरिवार के सभी सदस्यों की अलग-अलग समाधियां बनी हुई हैं। यहीं पर सुशीला कुमारी की एक छत्तरी अगले कुछ समय में बनकर तैयार हो जाएगी।
ऊंट, बैंड और शाही सवारी
अंतिम यात्रा में सबसे आगे राजस्थानी परिधानों से सजे ऊंट चल रहे थे, उनके पीछे राजपरिवार का स्पेशल बैंड मातमी धुन गा रहा था। वहीं पीछे शाही परिवार की पौशाक पहने लोग भी चल रहे थे। बड़ी संख्या में सामान्य लोग भी साथ साथ चल रहे थे। राजमाता के लिए विशेष पालकी कल ही तैयार की गई। जिसे फूलों से सजाया गया। इसी पालकी में उन्हें सागर तक ले जाया गया। इस सवारी में ऊंटों की गम्भीरता और बैंड की मातमी धुन ने सभी को मदहोश कर दिया था। इसके अलावा, शाही परिवार के सदस्यों के आकर्षक पोशाक भी सबकी नजरों में थे। उनकी शानदार पोशाकों में अलग-अलग रंगों का उपयोग किया गया था जो लोगों को खुशी और उत्साह देते थे। साथ ही साथ, इनकी स्वच्छता और व्यवहार सभी को प्रभावित करते थे।
RELATED ARTICLES
© Copyright 2021-2025, All Rights Reserved by Jogsanjog Times| Designed by amoadvisor.com