30 July 2022 01:44 PM
जोग संजोग टाइम्स,
पशुओं में होने वाली खुरपका और मुंहपका रोग ने अब सीकर जिले में बच्चों को अपनी गिरफ्त में लेना शुरू कर दिया है। शेखावाटी के झुंझुनूं जिले सहित कई जगह फैल चुकी इस वायरस जनित बीमारी के बच्चे सरकारी और निजी अस्पतालों में आ रहे हैं। एक सप्ताह के दौरान बच्चों के शरीर पर हो रहे फफोले और तेज पेट दर्द और बुखार जैसे लक्षण वाले बच्चे चिकित्सकों के पास पहुंच रहे हैं। चिंताजनक बात है कि इसका वायरस हवा के माध्यम से सामान्य लोगों को चपेट में ले लेता है।*
खाना-पीना कम इसलिए तरल सेवन जरूरी
इस वायरस की चपेट में आने पर बच्चे का खाना-पीना बहुत कम हो जाता है इसलिए रोगी को तरल पदार्थ के सेवन के जरिए हाइड्रेट रखना जरूरी होता है। कॉकसेकी वायरस ए टाइप 16 के सक्रिय होने के कारण यह मुंह के अंदर तालू, होठों, जीभ में छाले और हाथों, पैरों, कमर व छाती के आस-पास चकत्ते पैदा करता है। इन छालों में खुजली नहीं होती है। समय पर इलाज नहीं करवाने पर ये घाव अल्सर बन जाते हैं। इस बीमारी में खाना निगलने में बहुत दर्द होता है।
यूं फैलती है बीमारी
कॉकसेकी वायरस संक्रमित बच्चे के छींकने, खांसने से आसपास हवा में फैल जाता है और उस परिधि में आने वाले बच्चे चपेट में आ जाते हैं। यदि संक्रमित बच्चे के छाले का पानी मेज, कुर्सी, दरवाजे के कुंडे आदि में लग जाता है तो बाद में जो बच्चे उसे छूता है या उसके संपर्क में आता है, वह भी इसकी चपेट में आ जाता है।
ये हैं लक्षण
चिकित्सकों के अनुसार त्वचा में चकत्ते, त्वचा की परत उतरना, फफोला या लाल धब्बे, बुखार, खांसी, गले मे खराश, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, भूख न लगना। मरीज को खाना निगलते समय दर्द होता है। मरीज को थकान, बुखार, शरीर में पानी की कमी, अच्छा महसूस न होना। इस बीमारी में लक्षणों के आधार पर दवाएं दी जाती हैं। बुखार होने पर पैरासिटामॉल ही देनी चाहिए। कई बार एस्परीन देने से लीवर फेल होने का खतरा रहता है। दर्द हो तो दर्द से राहत देने वाली दवाएं लक्षणों से छुटकारा दिलाने में मदद करती हैं।
चिकित्सक: सावधानी बरतें
कॉकेसेकी ए 16 वायरस इस रोग का मुख्य कारण है। यह काफी संक्रामक बीमारी है। आमतौर पर इसकी चपेट में पांच साल से कम आयु वाले बच्चे ही आते हैं लेकिन इस बार यह बीमारी दस साल से ज्यादा आयु वाले बच्चों को भी अपनी गिरफ्त में ले रही है। इस बीमारी की चपेट में आने वाले बच्चों को स्वस्थ बच्चों से दूर रखना चाहिए। कुछ समय बाद यह बीमारी स्वत ठीक हो जाती है।
जोग संजोग टाइम्स,
पशुओं में होने वाली खुरपका और मुंहपका रोग ने अब सीकर जिले में बच्चों को अपनी गिरफ्त में लेना शुरू कर दिया है। शेखावाटी के झुंझुनूं जिले सहित कई जगह फैल चुकी इस वायरस जनित बीमारी के बच्चे सरकारी और निजी अस्पतालों में आ रहे हैं। एक सप्ताह के दौरान बच्चों के शरीर पर हो रहे फफोले और तेज पेट दर्द और बुखार जैसे लक्षण वाले बच्चे चिकित्सकों के पास पहुंच रहे हैं। चिंताजनक बात है कि इसका वायरस हवा के माध्यम से सामान्य लोगों को चपेट में ले लेता है।
खाना-पीना कम इसलिए तरल सेवन जरूरी
इस वायरस की चपेट में आने पर बच्चे का खाना-पीना बहुत कम हो जाता है इसलिए रोगी को तरल पदार्थ के सेवन के जरिए हाइड्रेट रखना जरूरी होता है। कॉकसेकी वायरस ए टाइप 16 के सक्रिय होने के कारण यह मुंह के अंदर तालू, होठों, जीभ में छाले और हाथों, पैरों, कमर व छाती के आस-पास चकत्ते पैदा करता है। इन छालों में खुजली नहीं होती है। समय पर इलाज नहीं करवाने पर ये घाव अल्सर बन जाते हैं। इस बीमारी में खाना निगलने में बहुत दर्द होता है।
यूं फैलती है बीमारी
कॉकसेकी वायरस संक्रमित बच्चे के छींकने, खांसने से आसपास हवा में फैल जाता है और उस परिधि में आने वाले बच्चे चपेट में आ जाते हैं। यदि संक्रमित बच्चे के छाले का पानी मेज, कुर्सी, दरवाजे के कुंडे आदि में लग जाता है तो बाद में जो बच्चे उसे छूता है या उसके संपर्क में आता है, वह भी इसकी चपेट में आ जाता है।
ये हैं लक्षण
चिकित्सकों के अनुसार त्वचा में चकत्ते, त्वचा की परत उतरना, फफोला या लाल धब्बे, बुखार, खांसी, गले मे खराश, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, भूख न लगना। मरीज को खाना निगलते समय दर्द होता है। मरीज को थकान, बुखार, शरीर में पानी की कमी, अच्छा महसूस न होना। इस बीमारी में लक्षणों के आधार पर दवाएं दी जाती हैं। बुखार होने पर पैरासिटामॉल ही देनी चाहिए। कई बार एस्परीन देने से लीवर फेल होने का खतरा रहता है। दर्द हो तो दर्द से राहत देने वाली दवाएं लक्षणों से छुटकारा दिलाने में मदद करती हैं।
चिकित्सक: सावधानी बरतें
कॉकेसेकी ए 16 वायरस इस रोग का मुख्य कारण है। यह काफी संक्रामक बीमारी है। आमतौर पर इसकी चपेट में पांच साल से कम आयु वाले बच्चे ही आते हैं लेकिन इस बार यह बीमारी दस साल से ज्यादा आयु वाले बच्चों को भी अपनी गिरफ्त में ले रही है। इस बीमारी की चपेट में आने वाले बच्चों को स्वस्थ बच्चों से दूर रखना चाहिए। कुछ समय बाद यह बीमारी स्वत ठीक हो जाती है।
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