09 July 2024 08:54 AM
जोग संजोग टाइम्स बीकानेर
इन दिनों स्मार्टफोन हमारी लाइफ का एक अहम हिस्सा बन चुका है। स्कूल की पढ़ाई हो या असाइनमेंट कंप्लीट करने की टेंशन, ऑफिस के काम को करने के लिए ज्यादातर मोबाइल का यूज कर रहे हैं। ऐसे में बच्चों में भी स्मार्टफोन का बढ़ता चलन उन्हें कई बीमारियों का शिकार बना रहा है और कई सारी ऐसी स्टडी बताती है कि जो युवा लगातार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर रहते हैं, उन्हें कई मेंटल हेल्थ की समस्याएं होती हैं, जिनमें डिप्रेशन की संभावना ज्यादा रहती है।
ऐसे में बहुत जरूरी है कि इस बात पर ध्यान देना, ताकि स्मार्टफोन का नेगेटिव इफेक्ट्स कम रहे। सबसे बड़ा सवाल है कि स्मार्टफोन के इस्तेमाल से बच्चों में डिप्रेशन की समस्या क्यों बढ़ती जा रही है। बच्चों में क्यों बढ़ रहा स्मार्टफोन का चलन? कैसे डिप्रेशन का कारण बनता है स्मार्टफोन ?, क्या बढ़ता तनाव ले सकता है बच्चों की जान ?
स्मार्टफोन के बढ़ते इस्तेमाल ने लोगों को कई तरह के लाभ और सुविधाएं मुहैया कराई हैं। हालांकि, इस तकनीक का बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। स्मार्टफोन के ज्यादा इस्तेमाल से इन दिनों बच्चों में कई तरह की परेशानियां देखने को मिल रही हैं, जिनमें विशेष रूप से डिप्रेशन से जुड़ी समस्याएं हैं। ऐसे में स्मार्टफोन के उपयोग और बच्चों में डिप्रेशन के लक्षणों के बीच संभावित लिंक को समझना बेहद महत्वपूर्ण है।
कई अध्ययनों में स्मार्टफोन के ज्यादा इस्तेमाल और बच्चों में डिप्रेशन की बढ़ती दरों के बीच संबंध देखने को मिला है। अत्यधिक स्मार्टफोन के उपयोग से सामाजिक अलगाव, खराब स्लीप पैटर्न, शारीरिक गतिविधि में कमी आती है। इसके अलावा बच्चे आमने-सामने बात करने में हिचकिचाहट महसूस करते हैं। ये कारक, साइबरबुलिंग और ऑनलाइन उत्पीड़न के जोखिम के साथ मिलकर, डिप्रेशन के लक्षणों के बढ़ावा देते हैं।
स्मार्टफोन के उपयोग और डिप्रेशन के बीच की कड़ी में योगदान देने वाला एक प्रमुख कारक नींद के पैटर्न पर नकारात्मक प्रभाव है। स्मार्टफोन की स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट बच्चों की स्लीप साइकिल में बाधा डाल सकती है, जिससे नींद आने और आराम की नींद लेने में कठिनाई होती है। अपर्याप्त नींद बच्चों और किशोरों में डिप्रेशन का बढ़ना और चिढ़चिढ़ाहट पैदा करने की एक बड़ी वजह है।
इसके अलावा, स्मार्टफोन के अत्यधिक उपयोग से आमने-सामने के सोशल कॉन्टेक्ट में कमी आ सकती है। बच्चे आभासी संबंधों में अधिक लीन हो सकते हैं और वास्तविक दुनिया के साथ कम समय व्यतीत कर सकते हैं, जो स्वस्थ सामाजिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। सार्थक सामाजिक संबंधों की यह कमी अकेलेपन, सामाजिक अलगाव और अंततः डिप्रेशन के लक्षणों की भावनाओं में योगदान कर सकती है।
ऐसे में बच्चों में स्मार्टफोन से संबंधित डिप्रेशन के मुद्दे का समाधान करना काफी महत्वपूर्ण है। डिप्रेशन के शुरुआती लक्षणों की पहचान करने और उन्हें संबोधित करने से समय पर इन्हें रोकने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा, बच्चों के साथ खुले संचार को बढ़ावा देने और सहायक वातावरण प्रदान करने से उन्हें स्मार्टफोन के उपयोग की वजह से होने वाली समस्याएं और डिप्रेशन के लक्षणों के विकास के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
Disclaimer: ऊपर दी गई जानकारी पर अमल करने से पहले डॉक्टर की राय अवश्य ले लें। जोग संजोग टाइम्स की ओर से कोई जानकारी का दावा नहीं किया जा रहा है।
जोग संजोग टाइम्स बीकानेर
इन दिनों स्मार्टफोन हमारी लाइफ का एक अहम हिस्सा बन चुका है। स्कूल की पढ़ाई हो या असाइनमेंट कंप्लीट करने की टेंशन, ऑफिस के काम को करने के लिए ज्यादातर मोबाइल का यूज कर रहे हैं। ऐसे में बच्चों में भी स्मार्टफोन का बढ़ता चलन उन्हें कई बीमारियों का शिकार बना रहा है और कई सारी ऐसी स्टडी बताती है कि जो युवा लगातार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर रहते हैं, उन्हें कई मेंटल हेल्थ की समस्याएं होती हैं, जिनमें डिप्रेशन की संभावना ज्यादा रहती है।
ऐसे में बहुत जरूरी है कि इस बात पर ध्यान देना, ताकि स्मार्टफोन का नेगेटिव इफेक्ट्स कम रहे। सबसे बड़ा सवाल है कि स्मार्टफोन के इस्तेमाल से बच्चों में डिप्रेशन की समस्या क्यों बढ़ती जा रही है। बच्चों में क्यों बढ़ रहा स्मार्टफोन का चलन? कैसे डिप्रेशन का कारण बनता है स्मार्टफोन ?, क्या बढ़ता तनाव ले सकता है बच्चों की जान ?
स्मार्टफोन के बढ़ते इस्तेमाल ने लोगों को कई तरह के लाभ और सुविधाएं मुहैया कराई हैं। हालांकि, इस तकनीक का बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। स्मार्टफोन के ज्यादा इस्तेमाल से इन दिनों बच्चों में कई तरह की परेशानियां देखने को मिल रही हैं, जिनमें विशेष रूप से डिप्रेशन से जुड़ी समस्याएं हैं। ऐसे में स्मार्टफोन के उपयोग और बच्चों में डिप्रेशन के लक्षणों के बीच संभावित लिंक को समझना बेहद महत्वपूर्ण है।
कई अध्ययनों में स्मार्टफोन के ज्यादा इस्तेमाल और बच्चों में डिप्रेशन की बढ़ती दरों के बीच संबंध देखने को मिला है। अत्यधिक स्मार्टफोन के उपयोग से सामाजिक अलगाव, खराब स्लीप पैटर्न, शारीरिक गतिविधि में कमी आती है। इसके अलावा बच्चे आमने-सामने बात करने में हिचकिचाहट महसूस करते हैं। ये कारक, साइबरबुलिंग और ऑनलाइन उत्पीड़न के जोखिम के साथ मिलकर, डिप्रेशन के लक्षणों के बढ़ावा देते हैं।
स्मार्टफोन के उपयोग और डिप्रेशन के बीच की कड़ी में योगदान देने वाला एक प्रमुख कारक नींद के पैटर्न पर नकारात्मक प्रभाव है। स्मार्टफोन की स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट बच्चों की स्लीप साइकिल में बाधा डाल सकती है, जिससे नींद आने और आराम की नींद लेने में कठिनाई होती है। अपर्याप्त नींद बच्चों और किशोरों में डिप्रेशन का बढ़ना और चिढ़चिढ़ाहट पैदा करने की एक बड़ी वजह है।
इसके अलावा, स्मार्टफोन के अत्यधिक उपयोग से आमने-सामने के सोशल कॉन्टेक्ट में कमी आ सकती है। बच्चे आभासी संबंधों में अधिक लीन हो सकते हैं और वास्तविक दुनिया के साथ कम समय व्यतीत कर सकते हैं, जो स्वस्थ सामाजिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। सार्थक सामाजिक संबंधों की यह कमी अकेलेपन, सामाजिक अलगाव और अंततः डिप्रेशन के लक्षणों की भावनाओं में योगदान कर सकती है।
ऐसे में बच्चों में स्मार्टफोन से संबंधित डिप्रेशन के मुद्दे का समाधान करना काफी महत्वपूर्ण है। डिप्रेशन के शुरुआती लक्षणों की पहचान करने और उन्हें संबोधित करने से समय पर इन्हें रोकने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा, बच्चों के साथ खुले संचार को बढ़ावा देने और सहायक वातावरण प्रदान करने से उन्हें स्मार्टफोन के उपयोग की वजह से होने वाली समस्याएं और डिप्रेशन के लक्षणों के विकास के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
Disclaimer: ऊपर दी गई जानकारी पर अमल करने से पहले डॉक्टर की राय अवश्य ले लें। जोग संजोग टाइम्स की ओर से कोई जानकारी का दावा नहीं किया जा रहा है।
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