09 February 2022 01:17 PM
जोग संजोग टाइम्स बीकानेर,
मिली जानकारी के अनुसार प्रकृति का जो मूल स्वरूप ब्रह्माण्ड वह महद्ब्रह्म के नाम से भी जाना जाता है। इसके तीन गुण बताये गए हैं, सत्व, रज और तम। ये तीन गुण प्रकृति के, सृष्टि के प्रत्येक पदार्थ में कम अधिक मात्रा में रहते ही हैं और उस मात्रा के आधार पर उस पदार्थ का स्वभाव निर्धारित होता है। मंच महाभूतों में भी ये गुण हैं।
ऐसी मान्यता है कि आकाश तत्व में सत्व गुण ही हैं। अतः वह शान्त, स्थिर, साक्षी स्वरूप है। वायु में सत्व व रज का मिश्रण है। तेज में रजोगुण की प्रबलता है। जल रज व तम का मिश्रण है तो पृथ्वी में तमोगुण ही प्रमुख है। भारतीय परंपरा में पांच तत्वों को मान्यता प्राप्त है जबकि चीन के वास्तु शास्त्र में चार तत्व ही माने गये हैं, आकाश को नहीं माना गया है।
वस्तुतः आकाश ही आधार है, प्रकृति का पूरा खेल आकाश में ही होता हे, अतः इसे हम भारतीयों ने प्रमुख तत्व, मूल तत्व माना है। प्राचीन काल में ऋषि मुनियों ने, जिन्होंने प्रकृति के, सृष्टि के रहस्य का अनुसंधान किया, उन्होंने सृष्टि की तीन स्थितियां निर्धारित कीं, आदि, मध्य और अंत, उत्पत्ति, स्थिति व लय, जन्म, जीवन, मृत्यु। वैसे तो विभिन्न पंचमहाभूतों के विविध प्रकार के मिश्रणों से स्वयंमेव पदार्थ बनते गये परन्तु आगे चलकर ऋषि
मुनियों ने उपरोक्त तीन स्थितियों को तीन विभागों का स्वरूप दे दिया और उस व्यवस्था के अंतर्गत उन तीन विभागों के व्यस्थापक अथवा विभागाध्यक्ष बनाये गये – ब्रह्मा, विष्णु, महेश।
सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता ब्रह्मा, पालनकर्ता अर्थात
जीवनरक्षाकर्ता, पालन पोषण कर्ता विष्णु और संहारक, मृत्युदाता को महेश की उपाधि से प्रतिष्ठित किया गया। सृष्टि रचना यानी उत्पत्ति, जन्म जिसमें गति होती है, गति और उसका परिणाम ऊष्णता, ये दोनों रजोगुुुण के परिणाम हैं, इसलिए ब्रह्मा को रजोगुण का प्रतीक माना गया। जीवन अर्थात स्थिति, स्थापना, अस्तित्व, इसमें सत्वुण की प्रधानता है, अतः पालन पोषण कर्ता, जीवन के अस्तित्व को निर्धारित करने वाले विष्णु को सत्वगुण का प्रतीक माना गया। लय, मृत्यु, अंत
अर्थात निष्क्रियता, निश्चेष्टता, यह तमोगुण का परिणाम है, अतः महेश को तमोगुण का प्रतीक माना गया। इन तीनों विभागध्यक्षों के, उन गुणों तथा कार्यानुसार उनके निवासस्थान भी निश्चित किये गये।
जल ही जीवन है अतः पालन पोषण कर्ता विष्णु को सागर-क्षीरसागर में निवासित किया गया। सूर्य की ऊष्णता से सागर का जल वाष्प बनकर बादलों के रूप में वर्षा द्वारा पृथ्वी पर बरसता है जिससे बनस्पति, धान्यादि उत्पन्न होते हैं जिनसे प्राणियों के शरीर पुष्ट और नीरोगी बनते हैं। ब्रह्मा, जन्मदाता जो जलचल, थलचर तथा खेचर तीनों प्रकार के पदार्थों प्राणियों का सृष्टिकर्ता है उसे विष्णु के नाभिकमल पर बिठाया गया, न जल में न थल में और न तो नभ में। और महेश अर्थात महा ईष्वर उसे सबसे ऊंचे शीतल स्थान कैलाश पर बैठाया गया।
इस प्रकार प्रकृति द्वारा प्रचालित ब्रह्माण्ड – सृष्टि की व्यवस्था का साक्षी परब्रह्म परमात्मा इन सम्पूर्ण कार्यभार से निर्लिप्त साक्षी स्वरूप स्वयं में लीन हो गया।
जोग संजोग टाइम्स बीकानेर,
मिली जानकारी के अनुसार प्रकृति का जो मूल स्वरूप ब्रह्माण्ड वह महद्ब्रह्म के नाम से भी जाना जाता है। इसके तीन गुण बताये गए हैं, सत्व, रज और तम। ये तीन गुण प्रकृति के, सृष्टि के प्रत्येक पदार्थ में कम अधिक मात्रा में रहते ही हैं और उस मात्रा के आधार पर उस पदार्थ का स्वभाव निर्धारित होता है। मंच महाभूतों में भी ये गुण हैं।
ऐसी मान्यता है कि आकाश तत्व में सत्व गुण ही हैं। अतः वह शान्त, स्थिर, साक्षी स्वरूप है। वायु में सत्व व रज का मिश्रण है। तेज में रजोगुण की प्रबलता है। जल रज व तम का मिश्रण है तो पृथ्वी में तमोगुण ही प्रमुख है। भारतीय परंपरा में पांच तत्वों को मान्यता प्राप्त है जबकि चीन के वास्तु शास्त्र में चार तत्व ही माने गये हैं, आकाश को नहीं माना गया है।
वस्तुतः आकाश ही आधार है, प्रकृति का पूरा खेल आकाश में ही होता हे, अतः इसे हम भारतीयों ने प्रमुख तत्व, मूल तत्व माना है। प्राचीन काल में ऋषि मुनियों ने, जिन्होंने प्रकृति के, सृष्टि के रहस्य का अनुसंधान किया, उन्होंने सृष्टि की तीन स्थितियां निर्धारित कीं, आदि, मध्य और अंत, उत्पत्ति, स्थिति व लय, जन्म, जीवन, मृत्यु। वैसे तो विभिन्न पंचमहाभूतों के विविध प्रकार के मिश्रणों से स्वयंमेव पदार्थ बनते गये परन्तु आगे चलकर ऋषि
मुनियों ने उपरोक्त तीन स्थितियों को तीन विभागों का स्वरूप दे दिया और उस व्यवस्था के अंतर्गत उन तीन विभागों के व्यस्थापक अथवा विभागाध्यक्ष बनाये गये – ब्रह्मा, विष्णु, महेश।
सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता ब्रह्मा, पालनकर्ता अर्थात
जीवनरक्षाकर्ता, पालन पोषण कर्ता विष्णु और संहारक, मृत्युदाता को महेश की उपाधि से प्रतिष्ठित किया गया। सृष्टि रचना यानी उत्पत्ति, जन्म जिसमें गति होती है, गति और उसका परिणाम ऊष्णता, ये दोनों रजोगुुुण के परिणाम हैं, इसलिए ब्रह्मा को रजोगुण का प्रतीक माना गया। जीवन अर्थात स्थिति, स्थापना, अस्तित्व, इसमें सत्वुण की प्रधानता है, अतः पालन पोषण कर्ता, जीवन के अस्तित्व को निर्धारित करने वाले विष्णु को सत्वगुण का प्रतीक माना गया। लय, मृत्यु, अंत
अर्थात निष्क्रियता, निश्चेष्टता, यह तमोगुण का परिणाम है, अतः महेश को तमोगुण का प्रतीक माना गया। इन तीनों विभागध्यक्षों के, उन गुणों तथा कार्यानुसार उनके निवासस्थान भी निश्चित किये गये।
जल ही जीवन है अतः पालन पोषण कर्ता विष्णु को सागर-क्षीरसागर में निवासित किया गया। सूर्य की ऊष्णता से सागर का जल वाष्प बनकर बादलों के रूप में वर्षा द्वारा पृथ्वी पर बरसता है जिससे बनस्पति, धान्यादि उत्पन्न होते हैं जिनसे प्राणियों के शरीर पुष्ट और नीरोगी बनते हैं। ब्रह्मा, जन्मदाता जो जलचल, थलचर तथा खेचर तीनों प्रकार के पदार्थों प्राणियों का सृष्टिकर्ता है उसे विष्णु के नाभिकमल पर बिठाया गया, न जल में न थल में और न तो नभ में। और महेश अर्थात महा ईष्वर उसे सबसे ऊंचे शीतल स्थान कैलाश पर बैठाया गया।
इस प्रकार प्रकृति द्वारा प्रचालित ब्रह्माण्ड – सृष्टि की व्यवस्था का साक्षी परब्रह्म परमात्मा इन सम्पूर्ण कार्यभार से निर्लिप्त साक्षी स्वरूप स्वयं में लीन हो गया।
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