01 August 2023 01:45 PM
जोग संजोग टाइम्स बीकानेर, जयपुर जवाहर कला केन्द्र और राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ के तत्वावधान में सोमवार को जवाहर कला केन्द्र के रंगायन सभागार में राज्य स्तरीय प्रेमचन्द जयन्ती समारोह का आयोजन किया गया।
वैचारिक सत्र में प्रतिष्ठित कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ ने ‘प्रेमचन्द की विरासत के मायने‘ विषय पर अपना व्याख्यान देते हुए कहा कि बीसवीं शताब्दी में भारत की स्थितियों पर प्रेमचन्द ने समाज की जिन विदू्रपताओं, विसंगतियों, नारी, दलित, वंचित वर्ग की चिंताओं को अपनी कलम से रेखांकित किया वह आज भी प्रासंगिक है। उनमें समष्टि से जुड़ने की चेतना थी। वे भारतीय मनोविज्ञान के माहिर थे। सामाजिक सरोकारों के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता थी। प्रेमचन्द समय और समाज के प्रखर आलोचक रहे। वे कहानी जीवन का अंग मानते थे। आज उनकी समावेशी और साझा संस्कृति की विरासत को समृद्ध करने की आवश्यकता है।
प्रतिष्ठित साहित्य आलोचक डॉ. राजाराम भादू ने विषय का परावर्तन करते हुए कहा कि 20वीं सदी सबसे ज्यादा परिवर्तनों की शताब्दी रही है। प्रेमचन्द जिन जीवन मूल्यों को लेकर सृजन कर रहे थे उसे बचाने की जरूरत है। उन्होंने यथार्थवाद, गांव और समाज, नारी और अन्त्योदयी को प्रतिष्ठा दिलाने का काम किया। उन्होंने ही कहा था कि साहित्य आगे चलने वाली मशाल है। सुप्रसिद्ध लेखक डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल और वरिष्ठ कवि कृष्ण कल्पित ने प्रेमचन्द के साहित्य पर विस्तार से प्रकाश डाला।
युवा लेखक-आलोचक डॉ. विशाल विक्रमसिंह ने प्रेमचन्द को गांवों का चितेरा और सच्चा इतिहासकार बताया। दुर्भाग्य से आज गांवों की महŸा घट रही है। प्रेमचन्द उस काल के लेखक हैं जब सामन्तवाद खात्मे की ओर एवं ताकतवर पूंजीवाद बढ़ने लगा था। प्रेमचन्द का विवेक हमारी विरासत है। उन्होंने कॉरपोरेट समाज की धड़कन को महसूस कर लिया था।
वैचारिक सत्र की अध्यक्षता मीरा पुरस्कार से सम्मानित कवि गोविन्द माथुर ने की और जवाहर कला केन्द्र के कार्यवाहक अतिरिक्त महानिदेशक प्रियव्रत चारण एवं प्रलेस के कार्यकारी अध्यक्ष फारूक आफरीदी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए रचनाकारों से वर्तमान समय की चुनौतियों का अपनी कलम से मुकाबला करने का आह्वान किया। वैचारिक सत्र का संचालन प्रगतिशील लेखक संघ की महासचिव प्रतिष्ठित कथाकार रजनी मोरवाल ने की और कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की।
जयन्ती समारोह का दूसरा सत्र ‘कहानी के नए स्वर‘ रहा जिसमें उमा, कविता मुखर, उषा दशोरा और उजला लोहिया ने अपनी नई कहानियों का वाचन किया। राजाराम भादू, तस्नीम खान, नितिन यादव और प्रमोद पाठक ने इनकी समीक्षा की। कहानी सत्र की अध्यक्षता राज्य लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष और उपन्यासकार डॉ. आरडी सैनी ने की। भागचन्द गुर्जर ने कार्यक्रम का संचालन किया।
इस अवसर पर इप्टा की ओर से प्रेमचन्द की कहानी ‘सद्गति‘ की शानदार नाट्य प्रस्तुति हुई। इसकी परिकल्ना संजय विद्रोही और निर्देशन ़ऋतिक शर्मा ने किया।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में प्रतिष्ठित लेखक, पत्रकार, साहित्यकार, रंगकर्मी मौजूद रहे। जवाहर कला केन्द्र के प्रतिनिधि अब्दुल लतीफ उस्ता ने सभी प्रतिभागी लेखकों को मोमेण्टों भेंट किया।
कार्यक्रम के समापन पर प्रतिष्ठित कवि, प्रशासक डॉ. डीआर जोधावत की स्मृति में दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई। प्रेमचन्द गांधी ने सभी का आभार व्यक्त किया।
जोग संजोग टाइम्स बीकानेर, जयपुर जवाहर कला केन्द्र और राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ के तत्वावधान में सोमवार को जवाहर कला केन्द्र के रंगायन सभागार में राज्य स्तरीय प्रेमचन्द जयन्ती समारोह का आयोजन किया गया।
वैचारिक सत्र में प्रतिष्ठित कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ ने ‘प्रेमचन्द की विरासत के मायने‘ विषय पर अपना व्याख्यान देते हुए कहा कि बीसवीं शताब्दी में भारत की स्थितियों पर प्रेमचन्द ने समाज की जिन विदू्रपताओं, विसंगतियों, नारी, दलित, वंचित वर्ग की चिंताओं को अपनी कलम से रेखांकित किया वह आज भी प्रासंगिक है। उनमें समष्टि से जुड़ने की चेतना थी। वे भारतीय मनोविज्ञान के माहिर थे। सामाजिक सरोकारों के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता थी। प्रेमचन्द समय और समाज के प्रखर आलोचक रहे। वे कहानी जीवन का अंग मानते थे। आज उनकी समावेशी और साझा संस्कृति की विरासत को समृद्ध करने की आवश्यकता है।
प्रतिष्ठित साहित्य आलोचक डॉ. राजाराम भादू ने विषय का परावर्तन करते हुए कहा कि 20वीं सदी सबसे ज्यादा परिवर्तनों की शताब्दी रही है। प्रेमचन्द जिन जीवन मूल्यों को लेकर सृजन कर रहे थे उसे बचाने की जरूरत है। उन्होंने यथार्थवाद, गांव और समाज, नारी और अन्त्योदयी को प्रतिष्ठा दिलाने का काम किया। उन्होंने ही कहा था कि साहित्य आगे चलने वाली मशाल है। सुप्रसिद्ध लेखक डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल और वरिष्ठ कवि कृष्ण कल्पित ने प्रेमचन्द के साहित्य पर विस्तार से प्रकाश डाला।
युवा लेखक-आलोचक डॉ. विशाल विक्रमसिंह ने प्रेमचन्द को गांवों का चितेरा और सच्चा इतिहासकार बताया। दुर्भाग्य से आज गांवों की महŸा घट रही है। प्रेमचन्द उस काल के लेखक हैं जब सामन्तवाद खात्मे की ओर एवं ताकतवर पूंजीवाद बढ़ने लगा था। प्रेमचन्द का विवेक हमारी विरासत है। उन्होंने कॉरपोरेट समाज की धड़कन को महसूस कर लिया था।
वैचारिक सत्र की अध्यक्षता मीरा पुरस्कार से सम्मानित कवि गोविन्द माथुर ने की और जवाहर कला केन्द्र के कार्यवाहक अतिरिक्त महानिदेशक प्रियव्रत चारण एवं प्रलेस के कार्यकारी अध्यक्ष फारूक आफरीदी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए रचनाकारों से वर्तमान समय की चुनौतियों का अपनी कलम से मुकाबला करने का आह्वान किया। वैचारिक सत्र का संचालन प्रगतिशील लेखक संघ की महासचिव प्रतिष्ठित कथाकार रजनी मोरवाल ने की और कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की।
जयन्ती समारोह का दूसरा सत्र ‘कहानी के नए स्वर‘ रहा जिसमें उमा, कविता मुखर, उषा दशोरा और उजला लोहिया ने अपनी नई कहानियों का वाचन किया। राजाराम भादू, तस्नीम खान, नितिन यादव और प्रमोद पाठक ने इनकी समीक्षा की। कहानी सत्र की अध्यक्षता राज्य लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष और उपन्यासकार डॉ. आरडी सैनी ने की। भागचन्द गुर्जर ने कार्यक्रम का संचालन किया।
इस अवसर पर इप्टा की ओर से प्रेमचन्द की कहानी ‘सद्गति‘ की शानदार नाट्य प्रस्तुति हुई। इसकी परिकल्ना संजय विद्रोही और निर्देशन ़ऋतिक शर्मा ने किया।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में प्रतिष्ठित लेखक, पत्रकार, साहित्यकार, रंगकर्मी मौजूद रहे। जवाहर कला केन्द्र के प्रतिनिधि अब्दुल लतीफ उस्ता ने सभी प्रतिभागी लेखकों को मोमेण्टों भेंट किया।
कार्यक्रम के समापन पर प्रतिष्ठित कवि, प्रशासक डॉ. डीआर जोधावत की स्मृति में दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई। प्रेमचन्द गांधी ने सभी का आभार व्यक्त किया।
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