07 June 2021 10:01 PM
हमारे देश में जब रोजगार नहीं मिला तो पापा भी भारत आ गए। सोचा था गांव तो छूट गया लेकिन दो पैसे कमाकर घर का गुजारा तो कर ही लेंगे। पापा दिनरात मेहनत करते थे। हमें पढ़ाई कराते थे। हमारा भी सपना था, पापा हमें मेहनत के पैसों से पढ़ाते हैं। हम पढ़लिखकर सरकारी नौकरी लगेंगे। खुद के साथ पापा के सपने भी पूरे करेंगे। ताकि पापा को अब दूसरों के घर साफ सफाई का कार्य नहीं करना पड़े। लेकिन ईश्वर को कुछ और मंजूर था। कोरोना ने तीनों भाई बहनों के सपने तो तोड़े ही, उससे भी बड़ा दुख दिया हमसे माता-पिता दोनों छीन लिए। दर्द भरी दास्तां बताते हुए तीनों भाई बहनों का का गला रूंध गया और आंखें छलक पड़ी। बिना माता-पिता के तीनों बच्चे अब झुंझुनूं में बिलख रहे हैं। पड़ौसी उनको सांत्वना दे रहे हैं लेकिन, माता-पिता के जाने का गम उनको हर पल रूला रहा है। अब तीनों भाई बहन नेपाल अपने दादा-दादी के पास जाने का इंतजार कर रहे हैं।
पड़ौसी देश नेपाल का रहने वाले मधु उर्फ मनोज विश्वकर्मा (40) करीब दस वर्ष पहले अपने परिचित के साथ रोजगार की तलाश में झुंझुनूं आया था। यहां वह रीको की आदर्श कॉलोनी में किराये के मकान में रह रहा था। यहां वह लोगों के घरों में खाना बनाने व अन्य घरेलू कार्य करता था। करीब पांच वर्ष पहले वह अपनी पत्नी सावित्री व तीनों बच्चों को भी नेपाल से झुंझुनूं ले आया। सावित्री भी लोगों के घरों में काम कर परिवार का लालन पालन कर रही थी। लेकिन लोगों के घरों में काम करते हुए दोनों को महामारी ने घेर लिया। तबीयत ज्यादा खराब होने पर दोनों को झुंझुनूं के बीडीके अस्पताल में भर्ती करवाया। हालत में सुधार नहीं होने पर दोनों को आरयूएचएस जयपुर रैफर कर दिया। वहां भी उनकी तबीयत में सुधार नहीं हुआ। 29 मई को सुबह करीब दस बजे सावित्री (35)कोरोना से जिंदगी की जंग हार गई। उसी रात परिवार के मुखिया चालीस वर्ष के मधु उर्फ मनोज विश्वकर्मा ने भी दम तोड़ दिया। जयपुर में ही दोनों का अंतिम संस्कार किया गया। बच्चे तो दोनों के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सके।
हमारे देश में जब रोजगार नहीं मिला तो पापा भी भारत आ गए। सोचा था गांव तो छूट गया लेकिन दो पैसे कमाकर घर का गुजारा तो कर ही लेंगे। पापा दिनरात मेहनत करते थे। हमें पढ़ाई कराते थे। हमारा भी सपना था, पापा हमें मेहनत के पैसों से पढ़ाते हैं। हम पढ़लिखकर सरकारी नौकरी लगेंगे। खुद के साथ पापा के सपने भी पूरे करेंगे। ताकि पापा को अब दूसरों के घर साफ सफाई का कार्य नहीं करना पड़े। लेकिन ईश्वर को कुछ और मंजूर था। कोरोना ने तीनों भाई बहनों के सपने तो तोड़े ही, उससे भी बड़ा दुख दिया हमसे माता-पिता दोनों छीन लिए। दर्द भरी दास्तां बताते हुए तीनों भाई बहनों का का गला रूंध गया और आंखें छलक पड़ी। बिना माता-पिता के तीनों बच्चे अब झुंझुनूं में बिलख रहे हैं। पड़ौसी उनको सांत्वना दे रहे हैं लेकिन, माता-पिता के जाने का गम उनको हर पल रूला रहा है। अब तीनों भाई बहन नेपाल अपने दादा-दादी के पास जाने का इंतजार कर रहे हैं।
पड़ौसी देश नेपाल का रहने वाले मधु उर्फ मनोज विश्वकर्मा (40) करीब दस वर्ष पहले अपने परिचित के साथ रोजगार की तलाश में झुंझुनूं आया था। यहां वह रीको की आदर्श कॉलोनी में किराये के मकान में रह रहा था। यहां वह लोगों के घरों में खाना बनाने व अन्य घरेलू कार्य करता था। करीब पांच वर्ष पहले वह अपनी पत्नी सावित्री व तीनों बच्चों को भी नेपाल से झुंझुनूं ले आया। सावित्री भी लोगों के घरों में काम कर परिवार का लालन पालन कर रही थी। लेकिन लोगों के घरों में काम करते हुए दोनों को महामारी ने घेर लिया। तबीयत ज्यादा खराब होने पर दोनों को झुंझुनूं के बीडीके अस्पताल में भर्ती करवाया। हालत में सुधार नहीं होने पर दोनों को आरयूएचएस जयपुर रैफर कर दिया। वहां भी उनकी तबीयत में सुधार नहीं हुआ। 29 मई को सुबह करीब दस बजे सावित्री (35)कोरोना से जिंदगी की जंग हार गई। उसी रात परिवार के मुखिया चालीस वर्ष के मधु उर्फ मनोज विश्वकर्मा ने भी दम तोड़ दिया। जयपुर में ही दोनों का अंतिम संस्कार किया गया। बच्चे तो दोनों के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सके।
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