16 November 2022 02:18 PM
जोग संजोग टाइम्स बीकानेर ,
विदेशी परिंदे साइब्रेरियन क्रेन यानी कुरजां इस बार भी मंगोलिया से 6000 किलोमीटर का लंबा सफर तय कर दलबल सहित लूणकरणसर में नमक की झील पर पहुंच गए हैं। फलौदी में खींचन, बीकानेर में गजनेर झील, कोलायत, तथा सूरतगढ़ भी इनके कलरव से गुंजायमान हैं। चूरू का ताल छापर और घाना पक्षी विहार भरतपुर भी इन दिनों इनके नेह से अछूते नहीं हैं।
कुरजां 26 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरते है। चने व गेहूं की बिजाई के समय आते हैं और खेतों में नुकसान पहुंचाते हैं। वन रक्षक लेखराम गोदारा के अनुसार कुरजां के साथ साथ ग्रेटर फ्लेमिंगो समंदर के खारे पानी और नमकीन झीलों में रहना पसंद करते हैं। सर्दियों में भोजन की तलाश में यह लूणकरणसर तक आ रहे हैं। यहां आने का एक मुख्य कारण प्रजनन भी है।
लोक जीवन के सुनहरे पन्ने में दर्ज है कुरजां से जुड़े गीत कुरजां म्हारी हालो नीं आलीजा रे देश... और कुरजां म्हारी भंवर मिला दे ऐ...। जैसे दर्जनों गीत विरहणियों की पीड़ा को बड़ी शिद्दत के साथ उकेरते रहे हैं। नियम और अनुशासन में रहने वाले ये पक्षी जब आसमान में परवाज भरते हैं तो देखते ही बनता है। कुछ-कुछ अंग्रेजी वर्णमाला के ‘वी’ आकार में झुंड बनाकर आसमान में ऊंचाई पर उड़ान भरने वाले ये पक्षी बहुत दूर तक देखने के लिए भी जाने जाते हैं। इन दिनोंलूणकरणसर के विभिन्न जोहड़ों,तालाबों के इर्द-गिर्द अपने लिए महफूज जगह तलाशकुरजां को जाना जाता है विरहणियों की सखी के रूप में राजस्थानी के लोक गीत इनके रंग में रंगे नजर आते हैं।
डेमोसिल क्रेन की संगत में इस बार पाइडेवोसेट, बारहेडेडगूज और समुद्री पक्षी ग्रेटर फ्लेमिंगो भी लूणकरणसर की नमक झील का जायका लेने पहुंचे हैं, जो यहां के लिए सुखद है। डेमोसिल क्रेन तो लोक भाषा में ‘विरहणियों की सखी’ के नाम से जानी जाती हैं। यह पक्षी लोक गीतों में बेहतरीन संदेश वाहक के रूप में वर्णित हैं। सलेटी रंग और गर्दन के नीचे झूलते हल्की कालिमा वाले रोएंदार पंखों वाले ये परिंदे शर्मीले स्वभाव एवं एकांतप्रिय मिज़ाज के कारण थोड़ी सी आहट-भर से उड़ान भर देते हैं।ते दिखाई दे रहे हैं। हजारों की तादाद में उपखंड क्षेत्र में अपनी परवाज भरने वाले कुरजां पक्षी लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने में सफल नजर आते हैं।
लूणकरणसर का वातावरण रास आया कुरजां को प्रवासी पक्षी ‘कुरजां’ का जमावड़ा लूणकरणसर क्षेत्र के विभिन्न जल स्रोतों के निकट नजर आ रहा है। पक्षी विशेषज्ञों की माने तो एक समय था जब कुरजां साइबेरिया से ईरान, अफगानिस्तान सहित कई देशों की सरहदें लांघकर पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान में उतरा करते थे। जहां इनका शिकार होने लगा। नतीजतन इन परिंदों ने वहां से अपना मुंह मोड़ लिया। हिंदुस्तान की मिट्टी में अब इन्होंने अपना महफूज आशियाना तलाश लिया है। हर साल सितंबर महीने में इन पक्षियों का आना शुरू हो जाता है और मार्च के अंत तक यहां पर ही रहते हैं।
जोग संजोग टाइम्स बीकानेर ,
विदेशी परिंदे साइब्रेरियन क्रेन यानी कुरजां इस बार भी मंगोलिया से 6000 किलोमीटर का लंबा सफर तय कर दलबल सहित लूणकरणसर में नमक की झील पर पहुंच गए हैं। फलौदी में खींचन, बीकानेर में गजनेर झील, कोलायत, तथा सूरतगढ़ भी इनके कलरव से गुंजायमान हैं। चूरू का ताल छापर और घाना पक्षी विहार भरतपुर भी इन दिनों इनके नेह से अछूते नहीं हैं।
कुरजां 26 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरते है। चने व गेहूं की बिजाई के समय आते हैं और खेतों में नुकसान पहुंचाते हैं। वन रक्षक लेखराम गोदारा के अनुसार कुरजां के साथ साथ ग्रेटर फ्लेमिंगो समंदर के खारे पानी और नमकीन झीलों में रहना पसंद करते हैं। सर्दियों में भोजन की तलाश में यह लूणकरणसर तक आ रहे हैं। यहां आने का एक मुख्य कारण प्रजनन भी है।
लोक जीवन के सुनहरे पन्ने में दर्ज है कुरजां से जुड़े गीत कुरजां म्हारी हालो नीं आलीजा रे देश... और कुरजां म्हारी भंवर मिला दे ऐ...। जैसे दर्जनों गीत विरहणियों की पीड़ा को बड़ी शिद्दत के साथ उकेरते रहे हैं। नियम और अनुशासन में रहने वाले ये पक्षी जब आसमान में परवाज भरते हैं तो देखते ही बनता है। कुछ-कुछ अंग्रेजी वर्णमाला के ‘वी’ आकार में झुंड बनाकर आसमान में ऊंचाई पर उड़ान भरने वाले ये पक्षी बहुत दूर तक देखने के लिए भी जाने जाते हैं। इन दिनोंलूणकरणसर के विभिन्न जोहड़ों,तालाबों के इर्द-गिर्द अपने लिए महफूज जगह तलाशकुरजां को जाना जाता है विरहणियों की सखी के रूप में राजस्थानी के लोक गीत इनके रंग में रंगे नजर आते हैं।
डेमोसिल क्रेन की संगत में इस बार पाइडेवोसेट, बारहेडेडगूज और समुद्री पक्षी ग्रेटर फ्लेमिंगो भी लूणकरणसर की नमक झील का जायका लेने पहुंचे हैं, जो यहां के लिए सुखद है। डेमोसिल क्रेन तो लोक भाषा में ‘विरहणियों की सखी’ के नाम से जानी जाती हैं। यह पक्षी लोक गीतों में बेहतरीन संदेश वाहक के रूप में वर्णित हैं। सलेटी रंग और गर्दन के नीचे झूलते हल्की कालिमा वाले रोएंदार पंखों वाले ये परिंदे शर्मीले स्वभाव एवं एकांतप्रिय मिज़ाज के कारण थोड़ी सी आहट-भर से उड़ान भर देते हैं।ते दिखाई दे रहे हैं। हजारों की तादाद में उपखंड क्षेत्र में अपनी परवाज भरने वाले कुरजां पक्षी लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने में सफल नजर आते हैं।
लूणकरणसर का वातावरण रास आया कुरजां को प्रवासी पक्षी ‘कुरजां’ का जमावड़ा लूणकरणसर क्षेत्र के विभिन्न जल स्रोतों के निकट नजर आ रहा है। पक्षी विशेषज्ञों की माने तो एक समय था जब कुरजां साइबेरिया से ईरान, अफगानिस्तान सहित कई देशों की सरहदें लांघकर पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान में उतरा करते थे। जहां इनका शिकार होने लगा। नतीजतन इन परिंदों ने वहां से अपना मुंह मोड़ लिया। हिंदुस्तान की मिट्टी में अब इन्होंने अपना महफूज आशियाना तलाश लिया है। हर साल सितंबर महीने में इन पक्षियों का आना शुरू हो जाता है और मार्च के अंत तक यहां पर ही रहते हैं।
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