जोग संजोग टाइम्स बीकानेर ,
   राजनीति और आरक्षण का का कोटा युवा  और देश पे खतरा 1 ,  बीकानेर में लगातार दौड़ रहे विधायक बलजीत:सरकारी नौकरियों में राजस्थान के युवाओं को 90 प्रतिशत आरक्षण की मांग  आखीर कुय ?  2  युवा से वोट पोलिंग होनी कहिये की उन्हें आरक्षण चहिये  या नही अगर आप देश का विकाश  चाहते  हो तो आरक्षण के अधीन कोई विकास  नही  और चहिये तो किसलिए ?                                
देश के विकास के लिए आरक्षण व्यवस्था खत्म होनी चाहिए देश में आरक्षण की व्यवस्था 1960 में शुरू की गई थी। इस दौरान डा. भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि यह आरक्षण केवल 10 साल के लिये लाना चाहिए। हर 10 साल में यह समीक्षा हो कि जिनको आरक्षण दिया जा रहा है, क्या उनकी स्थिति में कुछ सुधार हुआ है कि नहीं? उन्होंने यह भी स्पष्ट रूप से कहा कि यदि आरक्षण से किसी वर्ग का विकास हो जाता है तो उसके आगे की पीढ़ी को इस व्यवस्था का लाभ नहीं देना चाहिए, क्योंकि आरक्षण का मतलब बैसाखी नहीं है, जिसके सहारे सारी जिंदगी जी जाए। यह तो विकसित होने का एक आधार मात्र है, इससे ज्यादा कुछ भी नहीं। 
आज जब भारत तरक्की की राह पर आगे बढ़ रहा है, तो उसे फिर से पीछे धकेलने की साजिश क्यों की जा रही है? आरक्षण को अभी भी जारी रखना समाज को एक तरह से दो हिस्सों में बांटने की साजिश करना है। आरक्षण आज देश की जरूरत नहीं है। हम सोचते हैं कि दलित वर्ग इस आरक्षण को हटाने की पहल करेगा, लेकिन यह कतई संभव नहीं। जिन लोगों को बैसाखी के सहारे की आदत पड़ गई है, वे कभी अपनी बैसाखी हटाने के लिए नहीं कहेंगे। 
आज आप यूक्रेन में मैडीकल की पढ़ाई करने गए भारतीय बच्चों को देख रहे होंगे? आखिर इनको यूक्रेन जाने की जरूरत क्यों पड़ गई? यह एक तरह से प्रतिभा का पलायन है। भारत में एम.बी.बी.एस. की 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं। यूक्रेन में कर्नाटक के छात्र नवीन की मौत हुई है, जो नीट परीक्षा में 97 प्रतिशत नंबर लाकर भी सरकारी कालेज में एम.बी.बी.एस. की सीट हासिल नहीं कर पाया था। इसके चलते इसे यूक्रेन जाना पड़ा। यह कहानी नवीन जैसे कई छात्र-छात्राओं की है। हमें इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। हमें इन नवीनों को देश से बाहर जाने से रोकना ही होगा। 
आरक्षित वर्ग से देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक बन गए हैं, फिर यह वर्ग पीछे कैसे रह गया? कई विभागों में बड़े अधिकारी आरक्षित वर्ग से हैं। कई बड़े नेता आरक्षित वर्ग से हैं। फिर हम यह कैसे मान सकते हैं कि आज भी दलित वर्ग का विकास नहीं हो पाया है? दलित वर्ग का विकास काफी हो गया है, अब यह पिछड़े नहीं हैं और न ही कमजोर हैं। अब यह पूरी तरह सम्पन्न लोग हैं। आप इनके परिवारों और घरों को देखेंगे तो यह बात आसानी से समझ जाएंगे। 
भारत तेजी से बदल रहा है। जातिगत व्यवस्था से ही एक उदारवादी वर्ग उभरा है, जहां दलितों को बराबरी का दर्जा दिया गया है। अब देश में पहले की तरह भेदभाव नहीं रहा, हालात पूरी तरह नहीं, तो बहुत हद तक बदल गए हैं। देश में सवर्णों ने आरक्षण की मांग उठाई। अन्य कई वर्ग भी आरक्षण की मांग उठा रहे हैं। आखिर क्यों ऐसी स्थिति बन रही है? यह स्थिति आरक्षण की खराब व्यवस्था के लगातार जारी रहने के कारण बनी है। यह व्यवस्था देश को पीछे की ओर ले जा रही है। सामाजिक सद्भाव के नाम पर जाति हित देखा गया है। यह सीधे-सीधे समाज को बांटने, उसका ढांचा बिगाडऩे की कोशिश है। 
आरक्षण ने सामाजिक वैमनस्य को बढ़ावा दिया है। इसकी वजह साफ है। अगर 80 नंबर लाकर भी कोई 36 नंबर वाले से पीछे रह जाएगा तो उसके दिमाग में गुस्सा आना स्वाभाविक है। इसलिए इस व्यवस्था को पूरी तरह से खत्म किया जाना चाहिए। 
आरक्षण का विकल्प
आज हर तरह का आरक्षण पूरी तरह समाप्त होना चाहिए। किसी को भी एक प्रतिशत भी आरक्षण नहीं मिलना चाहिए, न सरकारी नौकरियों में और न ही राजनीति में। इसकी जगह आॢथक रूप से कमजोर छात्रों की शिक्षा पूरी तरह नि:शुल्क की जानी चाहिए। चाहे वह बच्चा दलित का हो या फिर सवर्ण का। जिसकी सालाना घरेलू आय 5 लाख रुपए से कम है, उसके बच्चे को नि:शुल्क शिक्षा मिले। प्रतियोगिता परीक्षा में कोई आरक्षण न हो, न ही किसी भी तरह का पक्षपातपूर्ण रवैया। सबके लिए खुला मैदान होना चाहिए। जो प्रतिभाशाली होगा, आगे निकल जाएगा और जो प्रतिभाशाली नहीं होगा, वह पीछे रह जाएगा। 
राजनीति में भी आरक्षण पूरी तरह समाप्त होना चाहिए। जनप्रतिनिधियों पर देश निर्माण की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है। कमजोर प्रतिनिधि देश के निर्माण में सहायक नहीं हो सकते। सभी को समान अवसर मिलना चाहिए। देश को पीछे मत ले जाइए। आरक्षण को हटाने की पहली प्राथमिकता बनाइए। आजादी के बाद से काफी कुछ बदल गया है। एक सामाजिक क्रांति देखी गई है। दलित जातिगत व्यवस्था के दबाव में निकलने लगे हैं। देश को बचाइए, किसी जाति को नहीं। (ये विचार  लेखक के निजी हैं) डॉ पूजा मोहता 
जोग संजोग टाइम्स बीकानेर ,
   राजनीति और आरक्षण का का कोटा युवा  और देश पे खतरा 1 ,  बीकानेर में लगातार दौड़ रहे विधायक बलजीत:सरकारी नौकरियों में राजस्थान के युवाओं को 90 प्रतिशत आरक्षण की मांग  आखीर कुय ?  2  युवा से वोट पोलिंग होनी कहिये की उन्हें आरक्षण चहिये  या नही अगर आप देश का विकाश  चाहते  हो तो आरक्षण के अधीन कोई विकास  नही  और चहिये तो किसलिए ?                                
देश के विकास के लिए आरक्षण व्यवस्था खत्म होनी चाहिए देश में आरक्षण की व्यवस्था 1960 में शुरू की गई थी। इस दौरान डा. भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि यह आरक्षण केवल 10 साल के लिये लाना चाहिए। हर 10 साल में यह समीक्षा हो कि जिनको आरक्षण दिया जा रहा है, क्या उनकी स्थिति में कुछ सुधार हुआ है कि नहीं? उन्होंने यह भी स्पष्ट रूप से कहा कि यदि आरक्षण से किसी वर्ग का विकास हो जाता है तो उसके आगे की पीढ़ी को इस व्यवस्था का लाभ नहीं देना चाहिए, क्योंकि आरक्षण का मतलब बैसाखी नहीं है, जिसके सहारे सारी जिंदगी जी जाए। यह तो विकसित होने का एक आधार मात्र है, इससे ज्यादा कुछ भी नहीं। 
आज जब भारत तरक्की की राह पर आगे बढ़ रहा है, तो उसे फिर से पीछे धकेलने की साजिश क्यों की जा रही है? आरक्षण को अभी भी जारी रखना समाज को एक तरह से दो हिस्सों में बांटने की साजिश करना है। आरक्षण आज देश की जरूरत नहीं है। हम सोचते हैं कि दलित वर्ग इस आरक्षण को हटाने की पहल करेगा, लेकिन यह कतई संभव नहीं। जिन लोगों को बैसाखी के सहारे की आदत पड़ गई है, वे कभी अपनी बैसाखी हटाने के लिए नहीं कहेंगे। 
आज आप यूक्रेन में मैडीकल की पढ़ाई करने गए भारतीय बच्चों को देख रहे होंगे? आखिर इनको यूक्रेन जाने की जरूरत क्यों पड़ गई? यह एक तरह से प्रतिभा का पलायन है। भारत में एम.बी.बी.एस. की 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं। यूक्रेन में कर्नाटक के छात्र नवीन की मौत हुई है, जो नीट परीक्षा में 97 प्रतिशत नंबर लाकर भी सरकारी कालेज में एम.बी.बी.एस. की सीट हासिल नहीं कर पाया था। इसके चलते इसे यूक्रेन जाना पड़ा। यह कहानी नवीन जैसे कई छात्र-छात्राओं की है। हमें इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। हमें इन नवीनों को देश से बाहर जाने से रोकना ही होगा। 
आरक्षित वर्ग से देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक बन गए हैं, फिर यह वर्ग पीछे कैसे रह गया? कई विभागों में बड़े अधिकारी आरक्षित वर्ग से हैं। कई बड़े नेता आरक्षित वर्ग से हैं। फिर हम यह कैसे मान सकते हैं कि आज भी दलित वर्ग का विकास नहीं हो पाया है? दलित वर्ग का विकास काफी हो गया है, अब यह पिछड़े नहीं हैं और न ही कमजोर हैं। अब यह पूरी तरह सम्पन्न लोग हैं। आप इनके परिवारों और घरों को देखेंगे तो यह बात आसानी से समझ जाएंगे। 
भारत तेजी से बदल रहा है। जातिगत व्यवस्था से ही एक उदारवादी वर्ग उभरा है, जहां दलितों को बराबरी का दर्जा दिया गया है। अब देश में पहले की तरह भेदभाव नहीं रहा, हालात पूरी तरह नहीं, तो बहुत हद तक बदल गए हैं। देश में सवर्णों ने आरक्षण की मांग उठाई। अन्य कई वर्ग भी आरक्षण की मांग उठा रहे हैं। आखिर क्यों ऐसी स्थिति बन रही है? यह स्थिति आरक्षण की खराब व्यवस्था के लगातार जारी रहने के कारण बनी है। यह व्यवस्था देश को पीछे की ओर ले जा रही है। सामाजिक सद्भाव के नाम पर जाति हित देखा गया है। यह सीधे-सीधे समाज को बांटने, उसका ढांचा बिगाडऩे की कोशिश है। 
आरक्षण ने सामाजिक वैमनस्य को बढ़ावा दिया है। इसकी वजह साफ है। अगर 80 नंबर लाकर भी कोई 36 नंबर वाले से पीछे रह जाएगा तो उसके दिमाग में गुस्सा आना स्वाभाविक है। इसलिए इस व्यवस्था को पूरी तरह से खत्म किया जाना चाहिए। 
आरक्षण का विकल्प
आज हर तरह का आरक्षण पूरी तरह समाप्त होना चाहिए। किसी को भी एक प्रतिशत भी आरक्षण नहीं मिलना चाहिए, न सरकारी नौकरियों में और न ही राजनीति में। इसकी जगह आॢथक रूप से कमजोर छात्रों की शिक्षा पूरी तरह नि:शुल्क की जानी चाहिए। चाहे वह बच्चा दलित का हो या फिर सवर्ण का। जिसकी सालाना घरेलू आय 5 लाख रुपए से कम है, उसके बच्चे को नि:शुल्क शिक्षा मिले। प्रतियोगिता परीक्षा में कोई आरक्षण न हो, न ही किसी भी तरह का पक्षपातपूर्ण रवैया। सबके लिए खुला मैदान होना चाहिए। जो प्रतिभाशाली होगा, आगे निकल जाएगा और जो प्रतिभाशाली नहीं होगा, वह पीछे रह जाएगा। 
राजनीति में भी आरक्षण पूरी तरह समाप्त होना चाहिए। जनप्रतिनिधियों पर देश निर्माण की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है। कमजोर प्रतिनिधि देश के निर्माण में सहायक नहीं हो सकते। सभी को समान अवसर मिलना चाहिए। देश को पीछे मत ले जाइए। आरक्षण को हटाने की पहली प्राथमिकता बनाइए। आजादी के बाद से काफी कुछ बदल गया है। एक सामाजिक क्रांति देखी गई है। दलित जातिगत व्यवस्था के दबाव में निकलने लगे हैं। देश को बचाइए, किसी जाति को नहीं। (ये विचार  लेखक के निजी हैं) डॉ पूजा मोहता