09 February 2023 06:14 PM
जोग संजोग टाइम्स बीकानेर ,
सीन 1ः तारीख- 13 दिसंबर 2001, समय- दोपहर 11.40 बजे, जगह- भारत की संसद।
संसद के गेट नंबर 12 से एक तेज रफ्तार सफेद एम्बेसडर कार दाखिल हुई। उससे 5 आतंकी निकले और एके-47 से अंधाधुंध फायरिंग करने लगे। इस हमले में कुल 14 लोगों की मौत हुई। पांचों आतंकियों को भी ढेर कर दिया गया।
सीन 2: तारीख- 15 दिसंबर 2001, जगह- श्रीनगर का सोपोर बस अड्डा।
बेलगाम की रोडवेज बस में बैठने जा रहे एक आतंकी को STF ने पकड़ लिया। पूछताछ के बाद खुलासा हुआ कि गिरफ्तार शख्स अफजल गुरु है, जिसने संसद पर हमला करने वाले आतंकवादियों की मदद की। पुलिस को अफजल के दिल्ली स्थित घर से हथियार और गोला-बारूद भी मिले।
सीन 3: 9 फरवरी 2013, समय- सुबह 8 बजे, जगह- दिल्ली का तिहाड़ जेल।
अफजल गुरु ने सुबह चाय पी फिर नमाज पढ़ी। आखिरी इच्छा पूछी गई तो उसने इनकार कर दिया। डॉक्टरी जांच और औपचारिकताओं के बाद उसे फांसी देकर तिहाड़ में ही दफना दिया गया।
अफजल गुरु को फांसी पर लटकाए गए आज ठीक 10 साल पूरे हो गए हैं। आज की स्टोरी में जानेंगे कि संसद पर हमले में अफजल गुरु की क्या भूमिका थी और उससे कुछ लोग सहानुभूति क्यों रखते हैं…
झेलम के तट पर बसा अफजल गुरु का गांव जम्मू कश्मीर के जिले बारामूला में है। 1986 में दसवीं पास करने के बाद उसने हायर सेकेंड्री के लिए मुस्लिम एजुकेशन ट्रस्ट में दाखिला लिया और यहां वो नवेद हकीम से मिला। हकीम तब भारत विरोधी गतिविधियों में सक्रिय था और यही वो शख्स था जिसने अफजल के लिए आंतकवाद के दरवाजे खोले।
अफजल ने बोर्ड की परीक्षा पास की और झेलम वैली मेडिकल कॉलेज में एडमिशन ले लिया। इस बीच अफजल और नवेद की दोस्ती परवान चढ़ी और अफजल जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट में शामिल हो गया। इसके बाद अफजल पाकिस्तान गया और मुजफ्फराबाद में हथियारों की ट्रेनिंग लेकर लौटा और कश्मीर में आतंकियों को ट्रेंड करने लगा।
आतंकी गतिविधियों में सक्रिय होने के कारण अफजल के परिजनों पर दबाव था। 1993-94 में अफजल ने सीमा सुरक्षा बल के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और फिर दिल्ली चला गया। दिल्ली में सात साल रहने के बाद अफजल ने घर लौट कर बारामूला की तबस्सुम से निकाह किया और उसे एक बेटा गालिब हुआ। इसके बाद एक बार फिर वो आतंक के रास्ते पर चल पड़ा।
पत्नी तबस्सुम के साथ अफजल गुरु की तस्वीर। साल- 2000
संसद पर हमले में अफजल गुरु की भूमिका
संसद पर हमला करने वाले पांच आतंकियों को मार गिराने के बाद जब तालाशी ली गई तो उनमें से एक के पास मोबाइल मिला। इसकी कॉल डिटेल में आखिरी तीन नंबर अफजल गुरु, शौकत गुरु और प्रो.ए.एस.आर. गिलानी के थे। इन तीनों की लोकेशन नॉर्थ दिल्ली में मिली।
पुलिस को लोकेशन पर प्रो. ए.एस.आर. गिलानी और शौकत गुरु की पत्नी अफसाना मिले। यहां अफसाना से पता चला कि शौकत और अफजल दोपहर में ही श्रीनगर रवाना हो गए हैं। यहां पुलिस को एक और जरूरी जानकारी हाथ लगी। शौकत की पत्नी अफसाना ने बताया कि अफजल के पास एक लैपटॉप है और वो उसे श्रीनगर के फल मंडी में तारिक नाम के एक शख्स को देने वाला है।
अफजल की पत्नी तबस्सुम और बेटा गालिब।
इसके बाद STF और पुलिस पूरी तैयारी के साथ श्रीनगर में तैनात हो जाते हैं। 15 दिसंबर की दोपहर 1:30 बजे उन दोनों को गिरफ्तार कर लिया जाता है।
अफजल ने बताया कि संसद पर हमले की प्लानिंग डेढ़ महीने पहले नवंबर 2001 में ही की गई थी। इसके लिए गाजी बाबा ने पाकिस्तान से पांच आतंकियों को बुलाया। अफजल इन्हें दिल्ली में कोऑर्डिनेट करता रहा। उन्हें गाड़ी दिलाई, संसद और बाकी जरूरी जगहों की रेकी कराई। गाजी बाबा, आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का कश्मीर में चीफ कामंडर था।
पुलिस की जांच में सामने आया कि संसद पर हमला करने जा रहे पांचों आतंकियों में से लीडर मोहम्मद ने बीच रास्ते में शौकत को फोन किया। दरअसल मोहम्मद ये जानना चाहता था कि संसद के भीतर क्या चल रहा है और उस वक्त संसद में कौन-कौन मौजूद है।
शौकत के घर बिजली नहीं थी तो मोहम्मद ने प्रो. ए.एस.आर. गिलानी को फोन किया। गिलानी का भी फोन नहीं लगा, तो मोहम्मद ने अफजल को फोन किया। तब तक वो आतंकी संसद के गेट तक आ चुके थे, इसलिए उन्होंने फोन पर ज्यादा बात नहीं की।
बाद में जांच में सामने आया कि अफजल गुरु जो लैपटॉप लेकर श्रीनगर जा रहा था वो मोहम्मद ने दिया है। अफजल को मोहम्मद ने दस लाख रुपए भी दिए जो श्रीनगर की फल मंडी में तारिक नाम के शख्स को देना था। ये तारिक गाजी बाबा का दाहिना हाथ था और संसद पर हमले के मामले में उसने भी मदद की थी।
शौकत गुरु, प्रो. गिलानी और अफजल गुरु (बाएं से)
संसद पर हमले के 2 दिन बाद ही गिरफ्तार
15 दिसंबर 2001 को दिल्ली पुलिस के STF ने अफजल गुरु को श्रीनगर से गिरफ्तार किया। इसके बाद अफजल के चचेरे भाई शौकत, शौकत की पत्नी नवजोत संधू (अफसान गुरु) और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एस.ए.आर. गिलानी को गिरफ्तार किया गया। इन सब पर भारत के खिलाफ युद्ध करने, साजिश रचने, हत्या और हत्या के प्रयास का आरोप लगा। इसके बाद मामले में आतंकवाद निरोधक अधिनियम, 2002 (POTA) लगाया गया।
छह माह बाद जुलाई 2002 में सभी चारों आरोपियों पर मुकदमा शुरू हुआ और लगभग 80 गवाहों से पूछताछ शुरू हुई। दिसबंर 2002 में स्पेशल कोर्ट ने अफजल, शौकत और प्रो. गिलानी को मौत की सजा सुनाई। शौकत की बीवी अफसान को पांच साल की सजा हुई, लेकिन अक्टूबर 2003 में गिलानी और अफसान को हाई कोर्ट ने बरी कर दिया। मामला सुप्रीम कोर्ट गया, लेकिन अफजल की मौत की सजा बरकरार रही। सुप्रीम कोर्ट ने शौकत गुरु की सजा-ए-मौत को 10 साल कैद में बदल दिया। 9 फरवरी 2013 को अफजल गुरु को फांसी पर लटका दिया गया।
अफजल गुरु के खारिज हो चुकी दया याचिका की कॉपी
9 फरवरी 2016 को जेएनयू में आतंकी अफजल गुरु की बरसी मनाई गई। इस दौरान यहां कथित तौर पर देशविरोधी नारे लगाए गए।
अफजल से सहानुभूति रखने वाले लोगों का कहना है कि…
जोग संजोग टाइम्स बीकानेर ,
सीन 1ः तारीख- 13 दिसंबर 2001, समय- दोपहर 11.40 बजे, जगह- भारत की संसद।
संसद के गेट नंबर 12 से एक तेज रफ्तार सफेद एम्बेसडर कार दाखिल हुई। उससे 5 आतंकी निकले और एके-47 से अंधाधुंध फायरिंग करने लगे। इस हमले में कुल 14 लोगों की मौत हुई। पांचों आतंकियों को भी ढेर कर दिया गया।
सीन 2: तारीख- 15 दिसंबर 2001, जगह- श्रीनगर का सोपोर बस अड्डा।
बेलगाम की रोडवेज बस में बैठने जा रहे एक आतंकी को STF ने पकड़ लिया। पूछताछ के बाद खुलासा हुआ कि गिरफ्तार शख्स अफजल गुरु है, जिसने संसद पर हमला करने वाले आतंकवादियों की मदद की। पुलिस को अफजल के दिल्ली स्थित घर से हथियार और गोला-बारूद भी मिले।
सीन 3: 9 फरवरी 2013, समय- सुबह 8 बजे, जगह- दिल्ली का तिहाड़ जेल।
अफजल गुरु ने सुबह चाय पी फिर नमाज पढ़ी। आखिरी इच्छा पूछी गई तो उसने इनकार कर दिया। डॉक्टरी जांच और औपचारिकताओं के बाद उसे फांसी देकर तिहाड़ में ही दफना दिया गया।
अफजल गुरु को फांसी पर लटकाए गए आज ठीक 10 साल पूरे हो गए हैं। आज की स्टोरी में जानेंगे कि संसद पर हमले में अफजल गुरु की क्या भूमिका थी और उससे कुछ लोग सहानुभूति क्यों रखते हैं…
झेलम के तट पर बसा अफजल गुरु का गांव जम्मू कश्मीर के जिले बारामूला में है। 1986 में दसवीं पास करने के बाद उसने हायर सेकेंड्री के लिए मुस्लिम एजुकेशन ट्रस्ट में दाखिला लिया और यहां वो नवेद हकीम से मिला। हकीम तब भारत विरोधी गतिविधियों में सक्रिय था और यही वो शख्स था जिसने अफजल के लिए आंतकवाद के दरवाजे खोले।
अफजल ने बोर्ड की परीक्षा पास की और झेलम वैली मेडिकल कॉलेज में एडमिशन ले लिया। इस बीच अफजल और नवेद की दोस्ती परवान चढ़ी और अफजल जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट में शामिल हो गया। इसके बाद अफजल पाकिस्तान गया और मुजफ्फराबाद में हथियारों की ट्रेनिंग लेकर लौटा और कश्मीर में आतंकियों को ट्रेंड करने लगा।
आतंकी गतिविधियों में सक्रिय होने के कारण अफजल के परिजनों पर दबाव था। 1993-94 में अफजल ने सीमा सुरक्षा बल के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और फिर दिल्ली चला गया। दिल्ली में सात साल रहने के बाद अफजल ने घर लौट कर बारामूला की तबस्सुम से निकाह किया और उसे एक बेटा गालिब हुआ। इसके बाद एक बार फिर वो आतंक के रास्ते पर चल पड़ा।
पत्नी तबस्सुम के साथ अफजल गुरु की तस्वीर। साल- 2000
संसद पर हमले में अफजल गुरु की भूमिका
संसद पर हमला करने वाले पांच आतंकियों को मार गिराने के बाद जब तालाशी ली गई तो उनमें से एक के पास मोबाइल मिला। इसकी कॉल डिटेल में आखिरी तीन नंबर अफजल गुरु, शौकत गुरु और प्रो.ए.एस.आर. गिलानी के थे। इन तीनों की लोकेशन नॉर्थ दिल्ली में मिली।
पुलिस को लोकेशन पर प्रो. ए.एस.आर. गिलानी और शौकत गुरु की पत्नी अफसाना मिले। यहां अफसाना से पता चला कि शौकत और अफजल दोपहर में ही श्रीनगर रवाना हो गए हैं। यहां पुलिस को एक और जरूरी जानकारी हाथ लगी। शौकत की पत्नी अफसाना ने बताया कि अफजल के पास एक लैपटॉप है और वो उसे श्रीनगर के फल मंडी में तारिक नाम के एक शख्स को देने वाला है।
अफजल की पत्नी तबस्सुम और बेटा गालिब।
इसके बाद STF और पुलिस पूरी तैयारी के साथ श्रीनगर में तैनात हो जाते हैं। 15 दिसंबर की दोपहर 1:30 बजे उन दोनों को गिरफ्तार कर लिया जाता है।
अफजल ने बताया कि संसद पर हमले की प्लानिंग डेढ़ महीने पहले नवंबर 2001 में ही की गई थी। इसके लिए गाजी बाबा ने पाकिस्तान से पांच आतंकियों को बुलाया। अफजल इन्हें दिल्ली में कोऑर्डिनेट करता रहा। उन्हें गाड़ी दिलाई, संसद और बाकी जरूरी जगहों की रेकी कराई। गाजी बाबा, आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का कश्मीर में चीफ कामंडर था।
पुलिस की जांच में सामने आया कि संसद पर हमला करने जा रहे पांचों आतंकियों में से लीडर मोहम्मद ने बीच रास्ते में शौकत को फोन किया। दरअसल मोहम्मद ये जानना चाहता था कि संसद के भीतर क्या चल रहा है और उस वक्त संसद में कौन-कौन मौजूद है।
शौकत के घर बिजली नहीं थी तो मोहम्मद ने प्रो. ए.एस.आर. गिलानी को फोन किया। गिलानी का भी फोन नहीं लगा, तो मोहम्मद ने अफजल को फोन किया। तब तक वो आतंकी संसद के गेट तक आ चुके थे, इसलिए उन्होंने फोन पर ज्यादा बात नहीं की।
बाद में जांच में सामने आया कि अफजल गुरु जो लैपटॉप लेकर श्रीनगर जा रहा था वो मोहम्मद ने दिया है। अफजल को मोहम्मद ने दस लाख रुपए भी दिए जो श्रीनगर की फल मंडी में तारिक नाम के शख्स को देना था। ये तारिक गाजी बाबा का दाहिना हाथ था और संसद पर हमले के मामले में उसने भी मदद की थी।
शौकत गुरु, प्रो. गिलानी और अफजल गुरु (बाएं से)
संसद पर हमले के 2 दिन बाद ही गिरफ्तार
15 दिसंबर 2001 को दिल्ली पुलिस के STF ने अफजल गुरु को श्रीनगर से गिरफ्तार किया। इसके बाद अफजल के चचेरे भाई शौकत, शौकत की पत्नी नवजोत संधू (अफसान गुरु) और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एस.ए.आर. गिलानी को गिरफ्तार किया गया। इन सब पर भारत के खिलाफ युद्ध करने, साजिश रचने, हत्या और हत्या के प्रयास का आरोप लगा। इसके बाद मामले में आतंकवाद निरोधक अधिनियम, 2002 (POTA) लगाया गया।
छह माह बाद जुलाई 2002 में सभी चारों आरोपियों पर मुकदमा शुरू हुआ और लगभग 80 गवाहों से पूछताछ शुरू हुई। दिसबंर 2002 में स्पेशल कोर्ट ने अफजल, शौकत और प्रो. गिलानी को मौत की सजा सुनाई। शौकत की बीवी अफसान को पांच साल की सजा हुई, लेकिन अक्टूबर 2003 में गिलानी और अफसान को हाई कोर्ट ने बरी कर दिया। मामला सुप्रीम कोर्ट गया, लेकिन अफजल की मौत की सजा बरकरार रही। सुप्रीम कोर्ट ने शौकत गुरु की सजा-ए-मौत को 10 साल कैद में बदल दिया। 9 फरवरी 2013 को अफजल गुरु को फांसी पर लटका दिया गया।
अफजल गुरु के खारिज हो चुकी दया याचिका की कॉपी
9 फरवरी 2016 को जेएनयू में आतंकी अफजल गुरु की बरसी मनाई गई। इस दौरान यहां कथित तौर पर देशविरोधी नारे लगाए गए।
अफजल से सहानुभूति रखने वाले लोगों का कहना है कि…
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