24 January 2023 12:32 PM
जोग संजोग टाइम्स बीकानेर ,
बीकानेर में जूतों की छोटी सी दुकान, लेकिन शौक एक्टिंग का। शौक भी ऐसा कि एक्टिंग सीखने के लिए दुकान के सारे जूते सेल में 200-200 रुपए में बेचकर मुंबई चले गए, लेकिन एक्टर बनने की राह आसान नहीं थी। पचास से सौ किलोमीटर दूर ऑडिशन देने के लिए लोकल ट्रेन में धक्के भी खाए।
10 मिनट के ऑडिशन के लिए पूरा दिन बीत जाता, लेकिन रोल नहीं मिलता। रुपए खत्म हो गए। फिर भी बीकानेर के संदीप भोजक ने एक्टर बनकर ही दम लिया।
वे 26 जनवरी को रिलीज होने जा रही जाने माने फिल्म डायरेक्टर राजकुमार संतोषी की फिल्म 'गांधी गोडसे' में जेलर की भूमिका में नजर आएंगे।
इस फिल्म के लिए संदीप को 20 किलो वजन बढ़ाना पड़ा। खास बात यह है कि अगली फिल्म के लिए उन्हें 20 किलो वजन घटाना पड़ रहा है।
भास्कर से बातचीत में संदीप ने अपने संघर्ष की पूरी जर्नी शेयर की...
संदीप बताते हैं कि बीकानेर का तौलियासर भैरुजी मंदिर मार्केट के अंदर गली में उनकी ब्रांडेड जूतों की दुकान थी। इस दुकान में 200 रुपए से 2 हजार रुपए तक के जूते उपलब्ध थे।
एक दिन दुकान में सेल लगा दी। सब जूते बिक गए तो अपनी पत्नी और पिता से बात करके मुंबई रवाना हो गया।
वादा किया था कि 6 महीने में एक्टर बनकर लौटूंगा। अगर नहीं बन पाया तो वापस बीकानेर आकर जूतों की दुकान खोल लूंगा।
संदीप बताते हैं कि जूतों की दुकान में वो 'सेल' नहीं लगाता तो आज भी दुकान पर जूते ही बेच रहा होता। खुद एक्टिंग निखारने में छह महीने का समय दिया।
इन्हीं छह महीने में 'दीया और बाती' जैसे सीरियल में काम मिल गया...
संदीप भोजक ने गांधी गोडसे फिल्म में जेलर अमोद राय का किरदार निभाया है। फिल्म के सेट का एक दृश्य।
शूटिंग की भीड़ में शामिल होने पहुंच जाता था
संदीप ने बताया- एक वक्त वो भी था, जब बीकानेर में किसी भी फिल्म की शूटिंग होती तो मैं वहां पहुंच जाता था। फिल्म में भीड़ की जरूरत होती थी।
वहां खड़ा होने की जिद करता था। कभी कोई मुझे झंडा देकर खड़ा कर ही देता था। जब किसी फिल्म स्टार को डायलॉग बोलते देखता तो बड़ा प्रभावित होता।
यहीं से फिल्मों में काम करने का शौक पैदा हुआ। अपनी एक्टिंग के शौक को पूरा करने के लिए 2014 में बीकानेर में रंगमंच में काम करना शुरू किया।
कुछ नाटकों का मंचन यहां के पुराने टाउन हॉल में किया। कुछ बनने की चाहत में एक्टिंग का कभी कोई मौका नहीं छोड़ा।
टीवी सीरियल और फिल्मों के साथ संदीप ने कई नाटक भी किए हैं।
संदीप ने बताया कि उनके पिता विनोद भोजक बीकानेर में पर्यटन व्यवसायी हैं। जो पर्यटकों के साथ घूमते रहे हैं।
उन्होंने मेरा करियर बनाने के लिए तौलियासर भैरुजी गली में दुकान खुलवाई थी। लाखों रुपए लगा दिए, लेकिन मुझे तो एक्टर बनना था। दुकान में रखे महंगे जूते भी बेच दिए तो पिता ने कुछ नहीं कहा।
मुंबई जाने से पहले अपने पिता, पत्नी और बेटी से अनुमति ली थी। तब मेरी बेटी तो बहुत छोटी थी, लेकिन पिता और पत्नी दोनों ने मेरा साथ दिया।
फिर मुंबई निकल गया। पिता ने हमेशा मुझे आगे बढ़ाने का प्रयास किया। वो आज भी मेरे लिए हर वक्त तैयार रहते हैं। मैं उनके लिए कुछ कर सकूं, ये ही प्रयास है।
अब बॉलीवुड में संदीप की पहचान बन चुकी है। एक्टर सनी देओल के साथ संदीप भोजक।
मुंबई में बहुत मुश्किलों से निकाले दिन
संदीप ने बताया- मुंबई में एक-एक रुपए के लिए संघर्ष किया। 50-50 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था, लोकल ट्रेन में धक्के खाए। ऐसा भी हुआ है, जब 100 किलोमीटर दूर जाने के लिए रुपए नहीं थे।
कई बार ऑडिशन के लिए पहुंचते तो पता चलता कि ऑडिशन कहीं ओर है। पूरा दिन ही 10 मिनट के ऑडिशन के लिए बीत जाता था।
रोल उसके बाद भी नहीं मिलता था। कई दिन तंगहाली में गुजारे। यहां तक कि पापा से प पैसे लेने पड़ते थे।
आज भी मुंबई में संदीप रोज ऑडिशन देने जाते हैं। इस दौरान बड़े-बड़े एक्टर से भी मिलते हैं। अभिषेक बच्चन के साथ संदीप भोजक एक मुलाकात के दौरान।
संदीप के मुताबिक उन्हें फिल्म 'गांधी गोडसे' में जेलर अमोद राय की भूमिका मिली है। अमोद राय का काफी महत्वपूर्ण रोल है।
जहां महात्मा गांधी जेल में आते हैं, वहीं अमोद राय जेलर हैं। वो महात्मा गांधी को जेल की बैरक में ले जाते हैं, वहां उनके साथ संवाद होता है। महात्मा गांधी की सुरक्षा का बड़ा जिम्मा अमोद राय के पास ही होता है।
आखिर गांधी गोडसे फिल्म में क्या दिया गया
संदीप ने बताया- मैं खुद महात्मा गांधी का प्रशंसक हूं। सवाल ये है कि गोडसे उनके विरोधी थे क्या? हमने जब इस फिल्म के लिए अध्ययन शुरू किया तो पता चला कि गोडसे खुद महात्मा गांधी के पूरी तरह विरोधी नहीं थे।
महात्मा गांधी के कुछ फैसलों से नाराज थे। इस फिल्म में भी यही बताया गया है कि गोडसे गांधी के किन फैसलों के खिलाफ थे, जिसके चलते गांधीजी की हत्या की।
इसका मतलब ये नहीं कि वो क्रिमिनल थे। हां गांधी की हत्या करना उनका गलत फैसला था। इसकी सजा उन्हें मिली।
गांधी का पक्ष सुने बिना ही गोडसे को इतिहास बना दिया गया। गोडसे को लगता था कि गांधी हिन्दुओं के लिए खतरनाक हैं।
वो हर समय मुसलमानों का पक्ष लेते हैं। गोडसे को फांसी देने वाले जज जी.डी. घोसला ने अपनी बुक में लिखा है कि अगर वो वहां बैठे लोगों से पूछता कि गोडसे के साथ क्या होना चाहिए तो वो कहते इसे बाइज्जत बरी कर दिया जाए।
चूंकि उसने गांधीजी का मर्डर किया था, हत्या की थी, इसलिए सजा सुनाई गई।
संदीप भोजक आने वाले दिनों में कई बड़े प्रोजेक्ट्स में नजर आएंगे। फिल्म इंडस्ट्री में बतौर एक्टर पहचान बना रहे संदीप सक्सेस का पूरा क्रेडिट अपनी फैमिली को देते हैं।
इतिहास बाहर आना चाहिए
संदीप ने कहा- गांधी ने इस देश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। खुद गोडसे भी ये मानते थे।
इसीलिए उसने पहले गांधी के पैर छुए फिर गोली चलाई। हमें गोडसे के इतिहास को बाहर लाना चाहिए। हम उसे छिपाकर नहीं रख सकते।
फिल्म में ऐसा क्या है?
संदीप ने कहा- फिल्म में क्या है? ये तो फिल्म देखने पर ही दर्शकों को पता चलेगा। इतना कह सकता हूं कि राजकुमार संतोषी ने इस फिल्म के लिए बहुत मेहनत की है।
गोडसे और उनसे जुड़े एक-एक पात्र पर खूब स्टडी की है। हमने इतिहास को पूरी तरह खंगालने के बाद इस फिल्म पर काम किया।
सबसे बड़ी बात ये है कि बिना किसी एक का पक्ष लिए जो जैसा था, वैसा बताने का प्रयास किया गया है।
संदीप को फिल्मों का इतना शौक था कि भीड़ में शामिल होने के लिए भी चले जाते थे।
बहुत पढ़ना पड़ा
संदीप बताते हैं कि इस फिल्म को बनाने से पहले गोडसे को लेकर काफी स्टडी की। महात्मा गांधी, नाथूराम गोडसे की जीवनी पढ़ी।
इस दौरान उनके घटना स्थलों के बारे में रिपोर्ट ली गई। जैसे मेरे पास जेलर अमोद राय का ही सीन था। तब जेलर कैसे होते थे, किस तरह रहते थे यह सब जाना।
तब जेलर की मूंछ बड़ी हुआ करती थी, इसलिए मुझे भी बड़ी मूंछे रखनी पड़ी। तब जेलर मोटे होते थे। जेल किस तरह के होते थे। सिपाही किस तरह रहते थे। घटनाओं की सत्यता का भी पता लगाया गया। कई तरह की बुक्स की पूरी टीम ने डीप स्टडी की। ताकि उन किरदारों को उसी अंदाज में निभाया जा सके।
संदीप ने गांधी गोडसे फिल्म के लिए महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे दोनों की जीवनी पढ़ी।
संदीप ने बताया- इस फिल्म के निर्देशक राजकुमार संतोषी है। वो बहुत सरल हैं। उन्होंने इस फिल्म में रंगमंच कलाकारों को अवसर दिया।
मैंने जब ऑडिशन दिया तो बोले कि अमोद राय के रूप में काम मिल सकता है, लेकिन वो मोटा था। मैंने कहा कि मैं वजन बढ़ा लूंगा। इसके बाद 20 किलो वजन बढ़ाने का टारगेट मिला।
इसके लिए दिनभर कुछ न कुछ खाता रहता था। ज्यादा पैदल नहीं चलता था। तय समय में मेरा वजन करीब 20 किलो बढ़ गया।
घर वाले भी कहते थे कि मोटा हो गया है। मुझे यही सुनना था। वजन बढ़ाकर संतोषी के पास पहुंचा तो उन्होंने सिलेक्ट कर लिया।
फिर दस किलो वजन घटाया
इस फिल्म के बाद अब मुझे कॉलेज लाइफ पर आधारित एक फिल्म में विलेन का रोल करना है। इसके लिए मुझे वापस वजन घटना पड़ रहा है। इसके लिए मैंने दौड़ना शुरू किया, जिम में पसीना बहाया। डाइट कम की। अब तक दस किलो वजन कम हो चुका है। एक जेलर की भूमिका से सीधे एक स्कूल स्टूडेंट का रोल के लिए काफी मेहनत कर रहा हूं।
संदीप ने टीवी सीरियल से की थी अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत।
कई नाटकों में काम किया
संदीप ने बीकानेर में वर्ष 2014 से नाटकों में काम करने का सिलसिला शुरू किया। संदीप ने बीकानेर के टाऊन हॉल, रवींद्र रंगमंच सहित अनेक स्टेज पर नाटक किए।
जिसमें 'ऐसो चतुर सुजान', 'मंगल पांडेय', 'कज़री', 'रहस्य', 'बरमूडा ट्रायंगल', 'मैरिज ब्यूरो', 'पति चाहिए' जैसे नाटक प्रमुख है।
इस दौरान संदीप ने मुकेश सेवग, विपिन पुरोहित, दिलीप सिंह भाटी और राजेंद्र तिवारी के निर्देशन में भी काम किया। इन्हीं नाटकों ने बहुत कुछ सिखाया। जहां कमी रहती, वहां निर्देशक बताते भी थे।
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मोटिवेशनल स्पीकर गौर गोपाल दास ने कहा कि हम जब आइसक्रीम खाते हैं, उसमें भी एक सीख है। आइसक्रीम हम पिघलने से पहले खा लेते हैं। ये सिखाता है हमें जिंदगी को पिघलने से पहले उसे एंजॉय करना है।
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बीकानेर में जूतों की छोटी सी दुकान, लेकिन शौक एक्टिंग का। शौक भी ऐसा कि एक्टिंग सीखने के लिए दुकान के सारे जूते सेल में 200-200 रुपए में बेचकर मुंबई चले गए, लेकिन एक्टर बनने की राह आसान नहीं थी। पचास से सौ किलोमीटर दूर ऑडिशन देने के लिए लोकल ट्रेन में धक्के भी खाए।
10 मिनट के ऑडिशन के लिए पूरा दिन बीत जाता, लेकिन रोल नहीं मिलता। रुपए खत्म हो गए। फिर भी बीकानेर के संदीप भोजक ने एक्टर बनकर ही दम लिया।
वे 26 जनवरी को रिलीज होने जा रही जाने माने फिल्म डायरेक्टर राजकुमार संतोषी की फिल्म 'गांधी गोडसे' में जेलर की भूमिका में नजर आएंगे।
इस फिल्म के लिए संदीप को 20 किलो वजन बढ़ाना पड़ा। खास बात यह है कि अगली फिल्म के लिए उन्हें 20 किलो वजन घटाना पड़ रहा है।
भास्कर से बातचीत में संदीप ने अपने संघर्ष की पूरी जर्नी शेयर की...
संदीप बताते हैं कि बीकानेर का तौलियासर भैरुजी मंदिर मार्केट के अंदर गली में उनकी ब्रांडेड जूतों की दुकान थी। इस दुकान में 200 रुपए से 2 हजार रुपए तक के जूते उपलब्ध थे।
एक दिन दुकान में सेल लगा दी। सब जूते बिक गए तो अपनी पत्नी और पिता से बात करके मुंबई रवाना हो गया।
वादा किया था कि 6 महीने में एक्टर बनकर लौटूंगा। अगर नहीं बन पाया तो वापस बीकानेर आकर जूतों की दुकान खोल लूंगा।
संदीप बताते हैं कि जूतों की दुकान में वो 'सेल' नहीं लगाता तो आज भी दुकान पर जूते ही बेच रहा होता। खुद एक्टिंग निखारने में छह महीने का समय दिया।
इन्हीं छह महीने में 'दीया और बाती' जैसे सीरियल में काम मिल गया...
संदीप भोजक ने गांधी गोडसे फिल्म में जेलर अमोद राय का किरदार निभाया है। फिल्म के सेट का एक दृश्य।
शूटिंग की भीड़ में शामिल होने पहुंच जाता था
संदीप ने बताया- एक वक्त वो भी था, जब बीकानेर में किसी भी फिल्म की शूटिंग होती तो मैं वहां पहुंच जाता था। फिल्म में भीड़ की जरूरत होती थी।
वहां खड़ा होने की जिद करता था। कभी कोई मुझे झंडा देकर खड़ा कर ही देता था। जब किसी फिल्म स्टार को डायलॉग बोलते देखता तो बड़ा प्रभावित होता।
यहीं से फिल्मों में काम करने का शौक पैदा हुआ। अपनी एक्टिंग के शौक को पूरा करने के लिए 2014 में बीकानेर में रंगमंच में काम करना शुरू किया।
कुछ नाटकों का मंचन यहां के पुराने टाउन हॉल में किया। कुछ बनने की चाहत में एक्टिंग का कभी कोई मौका नहीं छोड़ा।
टीवी सीरियल और फिल्मों के साथ संदीप ने कई नाटक भी किए हैं।
संदीप ने बताया कि उनके पिता विनोद भोजक बीकानेर में पर्यटन व्यवसायी हैं। जो पर्यटकों के साथ घूमते रहे हैं।
उन्होंने मेरा करियर बनाने के लिए तौलियासर भैरुजी गली में दुकान खुलवाई थी। लाखों रुपए लगा दिए, लेकिन मुझे तो एक्टर बनना था। दुकान में रखे महंगे जूते भी बेच दिए तो पिता ने कुछ नहीं कहा।
मुंबई जाने से पहले अपने पिता, पत्नी और बेटी से अनुमति ली थी। तब मेरी बेटी तो बहुत छोटी थी, लेकिन पिता और पत्नी दोनों ने मेरा साथ दिया।
फिर मुंबई निकल गया। पिता ने हमेशा मुझे आगे बढ़ाने का प्रयास किया। वो आज भी मेरे लिए हर वक्त तैयार रहते हैं। मैं उनके लिए कुछ कर सकूं, ये ही प्रयास है।
अब बॉलीवुड में संदीप की पहचान बन चुकी है। एक्टर सनी देओल के साथ संदीप भोजक।
मुंबई में बहुत मुश्किलों से निकाले दिन
संदीप ने बताया- मुंबई में एक-एक रुपए के लिए संघर्ष किया। 50-50 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था, लोकल ट्रेन में धक्के खाए। ऐसा भी हुआ है, जब 100 किलोमीटर दूर जाने के लिए रुपए नहीं थे।
कई बार ऑडिशन के लिए पहुंचते तो पता चलता कि ऑडिशन कहीं ओर है। पूरा दिन ही 10 मिनट के ऑडिशन के लिए बीत जाता था।
रोल उसके बाद भी नहीं मिलता था। कई दिन तंगहाली में गुजारे। यहां तक कि पापा से प पैसे लेने पड़ते थे।
आज भी मुंबई में संदीप रोज ऑडिशन देने जाते हैं। इस दौरान बड़े-बड़े एक्टर से भी मिलते हैं। अभिषेक बच्चन के साथ संदीप भोजक एक मुलाकात के दौरान।
संदीप के मुताबिक उन्हें फिल्म 'गांधी गोडसे' में जेलर अमोद राय की भूमिका मिली है। अमोद राय का काफी महत्वपूर्ण रोल है।
जहां महात्मा गांधी जेल में आते हैं, वहीं अमोद राय जेलर हैं। वो महात्मा गांधी को जेल की बैरक में ले जाते हैं, वहां उनके साथ संवाद होता है। महात्मा गांधी की सुरक्षा का बड़ा जिम्मा अमोद राय के पास ही होता है।
आखिर गांधी गोडसे फिल्म में क्या दिया गया
संदीप ने बताया- मैं खुद महात्मा गांधी का प्रशंसक हूं। सवाल ये है कि गोडसे उनके विरोधी थे क्या? हमने जब इस फिल्म के लिए अध्ययन शुरू किया तो पता चला कि गोडसे खुद महात्मा गांधी के पूरी तरह विरोधी नहीं थे।
महात्मा गांधी के कुछ फैसलों से नाराज थे। इस फिल्म में भी यही बताया गया है कि गोडसे गांधी के किन फैसलों के खिलाफ थे, जिसके चलते गांधीजी की हत्या की।
इसका मतलब ये नहीं कि वो क्रिमिनल थे। हां गांधी की हत्या करना उनका गलत फैसला था। इसकी सजा उन्हें मिली।
गांधी का पक्ष सुने बिना ही गोडसे को इतिहास बना दिया गया। गोडसे को लगता था कि गांधी हिन्दुओं के लिए खतरनाक हैं।
वो हर समय मुसलमानों का पक्ष लेते हैं। गोडसे को फांसी देने वाले जज जी.डी. घोसला ने अपनी बुक में लिखा है कि अगर वो वहां बैठे लोगों से पूछता कि गोडसे के साथ क्या होना चाहिए तो वो कहते इसे बाइज्जत बरी कर दिया जाए।
चूंकि उसने गांधीजी का मर्डर किया था, हत्या की थी, इसलिए सजा सुनाई गई।
संदीप भोजक आने वाले दिनों में कई बड़े प्रोजेक्ट्स में नजर आएंगे। फिल्म इंडस्ट्री में बतौर एक्टर पहचान बना रहे संदीप सक्सेस का पूरा क्रेडिट अपनी फैमिली को देते हैं।
इतिहास बाहर आना चाहिए
संदीप ने कहा- गांधी ने इस देश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। खुद गोडसे भी ये मानते थे।
इसीलिए उसने पहले गांधी के पैर छुए फिर गोली चलाई। हमें गोडसे के इतिहास को बाहर लाना चाहिए। हम उसे छिपाकर नहीं रख सकते।
फिल्म में ऐसा क्या है?
संदीप ने कहा- फिल्म में क्या है? ये तो फिल्म देखने पर ही दर्शकों को पता चलेगा। इतना कह सकता हूं कि राजकुमार संतोषी ने इस फिल्म के लिए बहुत मेहनत की है।
गोडसे और उनसे जुड़े एक-एक पात्र पर खूब स्टडी की है। हमने इतिहास को पूरी तरह खंगालने के बाद इस फिल्म पर काम किया।
सबसे बड़ी बात ये है कि बिना किसी एक का पक्ष लिए जो जैसा था, वैसा बताने का प्रयास किया गया है।
संदीप को फिल्मों का इतना शौक था कि भीड़ में शामिल होने के लिए भी चले जाते थे।
बहुत पढ़ना पड़ा
संदीप बताते हैं कि इस फिल्म को बनाने से पहले गोडसे को लेकर काफी स्टडी की। महात्मा गांधी, नाथूराम गोडसे की जीवनी पढ़ी।
इस दौरान उनके घटना स्थलों के बारे में रिपोर्ट ली गई। जैसे मेरे पास जेलर अमोद राय का ही सीन था। तब जेलर कैसे होते थे, किस तरह रहते थे यह सब जाना।
तब जेलर की मूंछ बड़ी हुआ करती थी, इसलिए मुझे भी बड़ी मूंछे रखनी पड़ी। तब जेलर मोटे होते थे। जेल किस तरह के होते थे। सिपाही किस तरह रहते थे। घटनाओं की सत्यता का भी पता लगाया गया। कई तरह की बुक्स की पूरी टीम ने डीप स्टडी की। ताकि उन किरदारों को उसी अंदाज में निभाया जा सके।
संदीप ने गांधी गोडसे फिल्म के लिए महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे दोनों की जीवनी पढ़ी।
संदीप ने बताया- इस फिल्म के निर्देशक राजकुमार संतोषी है। वो बहुत सरल हैं। उन्होंने इस फिल्म में रंगमंच कलाकारों को अवसर दिया।
मैंने जब ऑडिशन दिया तो बोले कि अमोद राय के रूप में काम मिल सकता है, लेकिन वो मोटा था। मैंने कहा कि मैं वजन बढ़ा लूंगा। इसके बाद 20 किलो वजन बढ़ाने का टारगेट मिला।
इसके लिए दिनभर कुछ न कुछ खाता रहता था। ज्यादा पैदल नहीं चलता था। तय समय में मेरा वजन करीब 20 किलो बढ़ गया।
घर वाले भी कहते थे कि मोटा हो गया है। मुझे यही सुनना था। वजन बढ़ाकर संतोषी के पास पहुंचा तो उन्होंने सिलेक्ट कर लिया।
फिर दस किलो वजन घटाया
इस फिल्म के बाद अब मुझे कॉलेज लाइफ पर आधारित एक फिल्म में विलेन का रोल करना है। इसके लिए मुझे वापस वजन घटना पड़ रहा है। इसके लिए मैंने दौड़ना शुरू किया, जिम में पसीना बहाया। डाइट कम की। अब तक दस किलो वजन कम हो चुका है। एक जेलर की भूमिका से सीधे एक स्कूल स्टूडेंट का रोल के लिए काफी मेहनत कर रहा हूं।
संदीप ने टीवी सीरियल से की थी अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत।
कई नाटकों में काम किया
संदीप ने बीकानेर में वर्ष 2014 से नाटकों में काम करने का सिलसिला शुरू किया। संदीप ने बीकानेर के टाऊन हॉल, रवींद्र रंगमंच सहित अनेक स्टेज पर नाटक किए।
जिसमें 'ऐसो चतुर सुजान', 'मंगल पांडेय', 'कज़री', 'रहस्य', 'बरमूडा ट्रायंगल', 'मैरिज ब्यूरो', 'पति चाहिए' जैसे नाटक प्रमुख है।
इस दौरान संदीप ने मुकेश सेवग, विपिन पुरोहित, दिलीप सिंह भाटी और राजेंद्र तिवारी के निर्देशन में भी काम किया। इन्हीं नाटकों ने बहुत कुछ सिखाया। जहां कमी रहती, वहां निर्देशक बताते भी थे।
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18 September 2025 12:36 PM
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