02 October 2022 12:14 PM
जोग संजोग टाइम्स बीकानेर, माँ का 635 जन्मदिवस बड़े धूम से मनाया गया हर साल जयंती नीकली जाती है हर्ष उल्लास से जयंती का निकाली जाती है,लाख की तादाद में भक्त जयंती में पुहुचे बेंड बाजा ढोल चिरजा भजन के सात शोभा यात्रा का आयोजन हूँवा पहले माँ क़रणी अपने बहन माँ तेमडाराय से मिलने के लिये जाते है फिर सदर बाज़ार से होकर वापस माँ करनी के मंदिर के लिए प्रस्थान करते है , माँ के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में लोग मौजूद रहते हैं, ग्राम वासियो के लिए यह दिन त्योहार जेसा है ,
जन्मस्थल- जोधपुर के फलौदी (वर्तमान में आऊ) के सुवाप गांव के मेहो चारण द्वितीय के घर पर करणी माता का जन्म 21 महीने के गर्भ के बाद संवत् 1444 में अश्विनी मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को हुआ। 29 साल तक वहीं रही। पिता, बुआ सहित आस-पास के सैकड़ों लोगों को चमत्कार दिए। संवत् 1473 में विवाह पर जन्मस्थली छोड़ी।
साठिका: तोरण धारी माता
विवाहस्थल- बीकोनर के नोखा स्थित साठिका गांव में संवत् 1473 में उनका विवाह देपाजी के साथ हुआ। शादी वाले दिन रास्ते में ही देपाजी को चमत्कार दिया। उन्हें अपना असली रूप बताकर छोटी बहन गुलाब बाई से शादी करने के लिए कहा। संवत् 1474 में बहन का विवाह देपाजी से करवा दिया। दो साल में उन्होंने साठिका का परित्याग कर दिया।
देशनोक: यहां जगदंबा स्वरूपा
तपोस्थली- बीकानेर शहर से 30 किमी दूर जहां करणी माता संवत् 1476 में आईं। वर्तमान में बने मुख्य मंदिर के अंदर स्वनिर्मित गु फा को तपोस्थली बनाया। संवत् 1594 तक यानी 118 साल तक यहां तपस्या की। देशनोक में ही नेहड़ी मंदिर में सपरिवार आवास स्थल बनाया। यहां पर गो सेवा को विशेष महत्व दिया। ओरण की स्थापना की।
धिनेरू तलाई: वरदात्री मां
महानिर्वाण- देशनोक से रवाना होकर जैसलमेर में अपनी आराध्या देवी आयड़ माता (तेमड़ाराय) के दर्शन कर करणी माता संवत् 1595 में धिनेरू तलाई पहुंचीं। यहां बीकानेर व जैसलमेर राजघराने के बीच युद्ध को शांत करने आई थीं। यहीं ज्वाला प्रकट कर करणी माता भौतिक शरीर से अदृश्य हो गईं। रिणमढ़ नाम से माता का मंदिर है।
जोग संजोग टाइम्स बीकानेर, माँ का 635 जन्मदिवस बड़े धूम से मनाया गया हर साल जयंती नीकली जाती है हर्ष उल्लास से जयंती का निकाली जाती है,लाख की तादाद में भक्त जयंती में पुहुचे बेंड बाजा ढोल चिरजा भजन के सात शोभा यात्रा का आयोजन हूँवा पहले माँ क़रणी अपने बहन माँ तेमडाराय से मिलने के लिये जाते है फिर सदर बाज़ार से होकर वापस माँ करनी के मंदिर के लिए प्रस्थान करते है , माँ के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में लोग मौजूद रहते हैं, ग्राम वासियो के लिए यह दिन त्योहार जेसा है ,
जन्मस्थल- जोधपुर के फलौदी (वर्तमान में आऊ) के सुवाप गांव के मेहो चारण द्वितीय के घर पर करणी माता का जन्म 21 महीने के गर्भ के बाद संवत् 1444 में अश्विनी मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को हुआ। 29 साल तक वहीं रही। पिता, बुआ सहित आस-पास के सैकड़ों लोगों को चमत्कार दिए। संवत् 1473 में विवाह पर जन्मस्थली छोड़ी।
साठिका: तोरण धारी माता
विवाहस्थल- बीकोनर के नोखा स्थित साठिका गांव में संवत् 1473 में उनका विवाह देपाजी के साथ हुआ। शादी वाले दिन रास्ते में ही देपाजी को चमत्कार दिया। उन्हें अपना असली रूप बताकर छोटी बहन गुलाब बाई से शादी करने के लिए कहा। संवत् 1474 में बहन का विवाह देपाजी से करवा दिया। दो साल में उन्होंने साठिका का परित्याग कर दिया।
देशनोक: यहां जगदंबा स्वरूपा
तपोस्थली- बीकानेर शहर से 30 किमी दूर जहां करणी माता संवत् 1476 में आईं। वर्तमान में बने मुख्य मंदिर के अंदर स्वनिर्मित गु फा को तपोस्थली बनाया। संवत् 1594 तक यानी 118 साल तक यहां तपस्या की। देशनोक में ही नेहड़ी मंदिर में सपरिवार आवास स्थल बनाया। यहां पर गो सेवा को विशेष महत्व दिया। ओरण की स्थापना की।
धिनेरू तलाई: वरदात्री मां
महानिर्वाण- देशनोक से रवाना होकर जैसलमेर में अपनी आराध्या देवी आयड़ माता (तेमड़ाराय) के दर्शन कर करणी माता संवत् 1595 में धिनेरू तलाई पहुंचीं। यहां बीकानेर व जैसलमेर राजघराने के बीच युद्ध को शांत करने आई थीं। यहीं ज्वाला प्रकट कर करणी माता भौतिक शरीर से अदृश्य हो गईं। रिणमढ़ नाम से माता का मंदिर है।
RELATED ARTICLES
08 March 2022 04:59 PM
© Copyright 2021-2025, All Rights Reserved by Jogsanjog Times| Designed by amoadvisor.com